आफरीन खान / अयोध्या
चचा मोहम्मद शरीफ अब तक हजारों लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करने के लिए मशहूर हैं और उन्हें इस सामाजिक कार्य के लिए पद्मश्री पुरस्कार भी मिल चुका है. वे इस समय बीमार चल रहे हैं और उन्हें अयोध्या जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया है. अब उप्र के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मोहसिन रजा ने अब चचा शरीफ के इलाज के लिए अपने ऐच्छिक कोष से 25 लाख रुपए का अनुदान दिया है.
चचा शरीफ को वर्ष 2020 में पद्मश्री के लिए नामित किया गया था, लेकिन पुरस्कार समारोह कोविड-19 और उसके बाद के लॉकडाउन के कारण आयोजित नहीं हो सका.
चचा शरीफ की ख्वाहिश है कि वे पद्म श्री पुरस्कार को अपनी आंखों से देखें, जिसके बारे में वे एक साल से सुन रहे हैं.
मंत्री रजा ने कहा, “मैं व्यक्तिगत रूप से यह देखूंगा कि यह पुरस्कार उन्हें उनके घर पर ही दिया जाए. मैं इसके लिए केंद्र सरकार में अधिकारियों के साथ बातचीत कर रहा हूं.”
अयोध्या में लावारिस शवों के वारिस के रूप में जाने जाने वाले शरीफ पिछले कई दिनों से बीमार हैं. इस सामाजिक कार्यकर्ता ने अपनी जवानी से बुढ़ापे तक 25,000 लावारिस शवों का अंतिम संस्कार किया है, वे अब अपने जीवन के अंतिम चरण में हैं.
लंबी अवधि की बीमारी के कारण उनके परिवार के सदस्य भी आर्थिक संकट से परेशान हैं. उनकी अंतिम इच्छा पद्मश्री की झलक पाने की है.
पद्मश्री मोहम्मद शरीफ ने बताया कि चार-पांच माह से उनकी तबियत खराब चल रही है. इधर कुछ दिनों से उनकी तबियत ज्यादा खराब हो गई है, जिसके चलते उनका पूरा परिवार परेशान है. हालांकि सूचना पाकर जिला प्रशासन के अधिकारियों ने उनका हालचाल लिया और उनके परिवार को हर सम्भव मदद उपलब्ध कराने का आश्वासन दिया.
चचा मोहम्मद शरीफ अस्पताल में भर्ती हैं
एडीएम सिटी वैभव शर्मा खुद उनके घर पहंुचे और जिला अस्पताल के चिकित्सक डॉक्टर वीरेंद्र वर्मा ने उनका परीक्षण किया. डाक्टर का कहना है कि उनके पेट में सूजन है, जिसके बाद उन्हें जिला अस्पताल में शिफ्ट करा दिया गया, जहां उनका इलाज चल रहा है.
अयोध्या के मोहल्ला खिड़की अली बेग में रहने वाले मोहम्मद शरीफ को लोग शरीफ चचा बुलाते हैं. जिस अस्पताल में उनका इलाज चल रहा है, उसी अस्पताल में वो सुबह शाम लावारिस मरीजों की सेवा के लिए हर रोज पहुंच जाते थे. यहां तक कि लावारिस लाशों को अपने कंधों पर लादकर, तो कभी ठेले पर ले जाकर उनका अंतिम संस्कार करते थे, लेकिन वक्त का तकाजा देखिये कि आज वो खुद बिस्तर पर हैं और परिवार उनकी दवाई के लिए पैसे जुटाने की जद्दोजहद में है.
शरीफ चचा अयोध्या में साइकल मरम्मत की दुकान चलाते थे, जो टीन की एक गुमटी में थी. वह अब बंद पड़ी है. वह स्थानीय वक्फ में मेम्बर के घर पर किराए पर रहते हैं.
उनकी पत्नी बिब्बी ने बताया कि उनके ऊपर बहुत कर्ज हो गया है. जान-पहचान के लोगों और दवा दुकानदार का हजारों रुपये बकाया है. उनके शौहर को अभी तक पद्म अवॉर्ड प्राप्त नहीं हुआ है, क्योंकि पुरस्कार समारोह को कोरोना महामारी और लॉकडाउन के कारण स्थगित कर दिया गया था.
दरअसल 29 साल पहले शरीफ के बेटे की किसी ने निर्मम हत्या कर दी और पुलिस ने उसकी लाश यूं ही लावारिसों की तरह डिस्पोज कर दी. एक तो बेटे को खोने का गम और फिर उसके जनाजे को बाप का कन्धा तक न नसीब होना. शरीफ का दिल खून के आंसू रोया, मगर शरीफ ने अपने इस दर्द को और अपने इस गुस्से को उन लोगों लिए दफन कर दिया, जिन्हें मरने के बाद कफन भी नसीब नहीं होता ..उनका दर्द ही उनकी मिसाल बन गया.
उन्होंने ठान लिया कि कोई भी चाहे हिन्दू हो या मुस्लिम, अब लावारिस नहीं रहेगा और उन्हें उसके धर्म के रीति-रिवाज के साथ अंतिम संस्कार कराएंगे. मोहम्मद शरीफ ने अपने इस दर्द को मिसाल बना दिया और ऐसे लोगों को करारा जवाब दिया, जो सिस्टम पर तोहमत लगाकर अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ लेते हैं.
शरीफ चचा ने अब तक पचीस हजार लवारिस लाशों के वारिस बने हैं. उनकी इसी खूबी के चलते वर्ष 2020 में सरकार ने उन्हें पद्म श्री अवार्ड देने की घोषणा की थी लेकिन कोविड 19 के चलते अवार्ड कार्यक्रम अभी तक नहीं हो सका.