इस्लामी संस्कृति की सबसे बड़ी खुदाबख्श लाइब्रेरी का होगा डिजिटलाइजेशन

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 23-01-2021
पटना की खुदाबख्श लाईब्रेरी, जो दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी इस्लामिक लाईब्रेरी है
पटना की खुदाबख्श लाईब्रेरी, जो दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी इस्लामिक लाईब्रेरी है

 

  • इस्लामी दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कुतुबखाना है खुदाबख्श लाइब्रेरी
  • पुस्तकालय में 2 लाख 91 हजार किताबों का जखीरा है मौजूद
  • इस्लाम के अलावा अन्य धर्मों का दुर्लभी पुस्तक संग्रह भी है
  • यहां इस्लाम की खूबियां एवं खामियां समझने को स्कॉलरों का रहता है जमावड़ा

यह पुस्तकालय विरासत का एक अद्वितीय कोष है, जिसे कागज, ताड़-पत्र, मृग चर्म, कपड़े और विविध सामग्रियों पर लिखित पांडुलिपियों के रूप में परिरक्षित किया गया है. मोहम्मद खुदाबख्श खान द्वारा एकत्रित दुर्लभ पांडुलिपियों के अलावा आइने-अकबरी, सिकंदरनामा, बाजनामा, शाहनामा, दीवान-ए-हाफिज, तारीख खानदान-ए-तैमूरी सहित भारतीय और मुगलकालीन एवं पर्शियन लिपि से जुड़ी कई पांडुलिपियां अपनी ओर आकर्षित करती हैं.

सेराज अनवर/ पटना

इस्लामी दुनिया को जानने के लिए मध्य एशिया में खुदाबख्श लाइब्रेरीसे बड़ा कुतुबखाना कहीं और नहीं होगा. लोग तो इसकी मिसाल तुर्की के इस्तांबुल लाइब्रेरी से देते हैं. खुदाबख्श लाइब्रेरी को इस्लामी दुनिया में तुर्की के बाद दूसरा सबसे बड़े ग्रंथालय के रूप में देखा जाता है. खुदाबख्श ओरिएंटल पब्लिक लाइब्रेरीएक तरफ गंगा की लहरों से अठखेलियां करती है, तो दूसरे छोर पर राजधानी पटना की गहमागहमी से लबरेज अशोक राजपथ पर दौड़ती-भागती जिंदगी के बीच यह लाइब्रेरी शांत और सीना ताने अपनी बुलंद मौजूदगी का अहसास कराती है. देश-दुनिया में रहस्यों का खजाना दबाए इस लाइब्रेरी की कमान पहली बार किसी महिला के हाथ में सौंपी गई है. निदेशक डॉ. शाइस्ता बेदार ने मात्र डेढ़ साल के अपने कार्यकाल में जीतोड़ मेहनत से खुदाबख्श की शान को दो-बाला कर दिया है. प्राचीन इस्लामी दुनिया, इसकी गतिविधियों, संस्कृति और रीति-रिवाज को समझने-परखने के लिए विश्व में इससे बेहतर और कोई जगह नहीं. जिसे भी इस्लाम में दिलचस्पी होती है, चाहे वह मुस्लिम हो या गैर मुस्लिम, मजहब-ए-इस्लाम की खूबियों एवं खामियों को समझने के लिए इस पुस्तकालय में आता हैं.

khudabakhsh

खुदाबख्श 


खुदाबख्श लाइब्रेरी दरअसल मोहम्मद बख्श का सपना थी. उनकी हार्दिक इच्छा थी कि पटना में अरबी एवं फारसी की दुर्लभ प्राचीन पुस्तकों, दस्तावेजों एवं पांडुलिपियों का एक ऐसा पहाड़ खड़ा किया जाए, जिसकी सैर कर लोग इल्म की संजीवनी प्राप्त कर सकें. उन्होंने जिस समय दुनिया छोड़ी, उस समय वे 1400 किताबें अपने लड़के खुदाबख्श को सौंप गए थे. इसके अलावा उन्होंने अपने बेटे के नाम एक वसीयत भी छोड़ी थी, जिसमें लिखा था, ‘उनके मरने के बाद ये किताबें शहर पटना में एक बड़े पुस्तकालय का केंद्र बन जाए और पुस्तकालय पूर्वी ज्ञान के प्रचार-प्रसार का सागर हो.’

शाइस्ता बेदार बताती हैं कि आज की तारीख में यहां 2 लाख 91 हजार किताबों का जखीरा मौजूद है. बड़े पैमाने पर डिजिटलाइजेशन का काम चल रहा है. अंग्रेजी में कैटेलॉग तैयार कर लिया गया है. जल्द ही सूची को पुस्तकालय के वेबसाइट पर डाला जाएगा. स्टॉक वेरिफिकेशन का काम पहली बार हुआ है. पहले पता ही नहीं रहता था कि असल में लाइब्रेरी के पास कितनी किताबें हैं. महिला निदेशक ने लॉकडाउन में इस जटिल कार्य को कर दिखाया. कोरोना के कारण रीडिंग रूम अभी बंद है, लेकिन पुस्तकालय के अन्य कार्यों पर इसका असर नहीं पड़ने दिया गया है. शाइस्ता बेदार, आबिद रजा बेदार की साहबजादी हैं. बेदार साहब भी इस लाइब्रेरी के निदेशक रह चुके हैं. उनके कार्यकाल में पुस्तकालय ने खूब तरक्की की. शाइस्ता भी अपने पिता के नक्शेकदम पर चलकर पुस्तकालय को प्रगति के पथ पर ले जाना चाहती हैं.

2014 से 2091 तक बिना निदेशक के रही लाइब्रेरी

2014 से 2019 मार्च तक लाइब्रेरी बिना निदेशक के रही. जिस कारण बहुत सारे कार्य ठप पड़ गए. शाइस्ता को अप्रैल, 2019 में निदेशक बनाया गया. इनके सामने पुस्तकालय को पटरी पर लाने की बड़ी चुनौती थी. उन्होंने इस चौलेंज को कुबूल किया और काम में जुट गईं. काम इतना है कि चेंबर में बैठने की बजाय वे सारा दिन घूमकर काम करती नजर आती हैं.खुदाबख्श ओरिएंटल पब्लिक लाइब्रेरी, संस्कृति मंत्रालय के अधीन एक स्वायत्त निकाय है. इसकी स्थापना 1891 में हुई थी. खुदाबख्श ने उस वर्ष अपनी किताबों का निजी संग्रह को जनता को सौंप दिया था. खुदाबख्श ने अपने पिता द्वारा सौंपी गई पुस्तकों के अलावा और भी पुस्तकों का संग्रह किया और 1888 में लगभग 80 हजार रुपये की लागत से एक दोमंजिले भवन में इस पुस्तकालय की शुरुआत की गई और 1891 में 29 अक्टूबर को जनता की सेवा में समर्पित किया.

बहुभाषी है पुस्तकालय

उस समय पुस्तकालय के पास अरबी, फारसी और अंग्रेजी की चार हजार दुर्लभ पांडुलिपियां मौजूद थीं. कुरआन की प्राचीन प्रतियां और हिरण की खाल पर लिखी कुरानी पृष्ठ भी मौजूद हैं. इसके समृद्ध और मूल्यवान संग्रह के असीम ऐतिहासिक और बौद्धिक मूल्य को पहचानते हुए भारत सरकार ने इस पुस्तकालय को सन् 1969 में एक संसद अधिनियम के माध्यम से राष्ट्रीय महत्व का संस्थान घोषित किया.यह पुस्तकालय विरासत का एक अद्वितीय कोष है, जिसे कागज, ताड़-पत्र, मृग चर्म, कपड़े और विविध सामग्रियों पर लिखित पांडुलिपियों के रूप में परिरक्षित किया गया है.

पुस्तकालय का स्वरूप आधुनिक भी है, जिसमें जर्मन, फ्रेंच, पंजाबी, जापानी और रूसी पुस्तकों के अलावा अरबी, फारसी, उर्दू, अंग्रेजी और हिंदी में मुद्रित पुस्तकें भी रखी गई हैं. यह पुस्तकालय प्राच्य अध्ययनों में एक अनुसंधान केंद्र के रूप में तथा छात्रों, युवाओं और वरिष्ठ नागरिकों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एक सार्वजनिक पुस्तकालय के रूप में कार्य करते हुए दोहरी भूमिका निभाता है. पुस्तकालय के पास दो पठन कक्ष हैं, एक कक्ष अनुसंधानकर्ताओं और स्कॉलरों के लिए है, जबकि दूसरे कक्ष अनियमित पाठकों के लिए हैं.लार्ड कर्जन के नाम से रखा गया कर्जन पठन कक्ष सभी के लिए खुला रहता है. कई समाचार पत्र, पत्रिकाएं अंग्रेजी, उर्दू तथा हिंदी में उपलब्ध हैं. प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए संबंधित पुस्तकों के अलावा अन्य पुस्तकें भी पठन कक्ष में उपलब्ध कराई गई हैं.

सर्जरी से लेकर मेडिसिन तक

लाइब्रेरी में रखी दुर्लभ पुस्तक, पेंटिंग के बारे में लाइब्रेरी की निदेशक डॉ. शाइस्ता बताती हैं कि पांडुलिपियों और तस्वीरों की यह लाइब्रेरी पटना के मशहूर वकील मरहूम खुदाबख्श खान की पटनावासियों के लिए बेशकीमती देन है. वह बताती हैं कि खुदाबख्श साहब का जन्म छपरा जिले के ओखी गांव में दो अगस्त, 1842 को हुआ था. इनके विद्वान पूर्वजों ने कभी औरंगजेब को फतवा-ए-आलमगीर लिखने में मदद की थी. खुदाबख्श की परवरिश अपने पिता की देखरेख में हुई. अपने पिता के दिए गए वायदे के मुताबिक उन्होंने इस लाइब्रेरी की बुनियाद रखी. यहां सर्जरी से लेकर मेडिसिन तक की दुर्लभ पुस्तकें मौजूद हैं.

दुर्लभ पांडुलिपियां

Rare manuscripts and books are kept in the Khudabakhsh library

खुदाबख्श लाईब्रेरी में रखी हैं दुर्लभ पांडुलिपियां और पुस्तकें


यहां की कुछ पेंटिंग तो हैरान कर देने वाली हैं. मोहम्मद खुदाबख्श खान द्वारा एकत्रित दुर्लभ पांडुलिपियों के अलावा आइने-अकबरी, सिकंदरनामा, बाजनामा, शाहनामा, दीवान-ए-हाफिज, तारीख खानदान-ए-तैमूरी सहित भारतीय और मुगलकालीन एवं पर्शियन लिपि से जुड़ी कई पांडुलिपियां अपनी ओर आकर्षित करती हैं. पुस्तकालय में रखी कुछ पांडुलिपियों और किताबों में से कुछ तो दुनिया में कहीं मौजूद नहीं है. मुगल साम्राज्य के साथ रामायण, श्रीमद्भागवत गीता की दुर्लभ प्रतियां भी यहां मौजूद हैं. आइने-अकबरी में मुगल साम्राज्य से जुड़ी जानकारी के साथ हथियार की कलाकृति है. वहीं 17वीं सदी के सिकंदरनामा में सिकंदर के क्रियाकलापों के बारे में बताया गया है. बाजनामा में बाज पक्षी की अलग-अलग प्रजातियों को तस्वीर के जरिए दिखाया गया है. पर्शियन लिपि में लिखे 11वीं सदी के शाहनामा में इस्लाम से पहले की कहानी कविता के जरिए बताई गई है.

पांडुलिपियों का डिजिटलाइजेशन

शाइस्ता अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की मौलाना आजाद लाइब्रेरी में असिस्टेंट लाइब्रेरियन के पद पर रह चुकी हैं. वे मूल रूप से यूपी के रामपुर की रहने वाली हैं. हालांकि, उनका बचपन पटना में ही गुजरा है. वह सेंट जोसेफ और क्राइस्ट चर्च स्कूल की छात्रा रही हैं. इंटर से स्नातक की पढ़ाई मगध महिला कॉलेज और पटना विवि से इतिहास में एमए किया है. इसके अलावा लाइब्रेरी साइंस में स्नातकोत्तर हैं. वह पीएचडी भी कर चुकी हैं. शाइस्ता से पहले उनके पिता डॉ. आबिद रजा बेदार, डॉ. हबीबुर रहमान चुगानी, डॉ. जिया उद्दीन अंसारी व डॉ. इम्तेयाज निदेशक रह चुके हैं.

अब तक के पांच निदेशकों में केवल डॉ. इम्तेयाज बिहार के हैं. अन्य चार यूपी के रहने वाले थे, लेकिन इनमें सबसे चर्चित नाम मौजूदा निदेशक शाइस्ता के पिता आबिद रजा बेदार का है. खुदाबख्श के प्रति उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है. शाइस्ता कहती भी हैं कि बस इतनी तमन्ना है कि मेरे पिता ने लाइब्रेरी को जिस मुकाम तक पहुंचाया, उस पोजिशन पर ला सकूं. मौलाना आजाद लाइब्रेरी में जो अनुभव प्राप्त किया हूं, वह इस लाइब्रेरी को दूंगी. उनकी प्रथम प्राथमिकता रीर्ड्स को संतुष्ट करना है. पांडुलिपियों का डिजिटलाइजेशन करना है. डिजिटलाइजेशन जल्दी शुरू हो जाएगा। रिसर्च के काम को आगे बढ़ाऊंगी.

सेमिनार और पुस्तकों का प्रकाशन

Dr. Shaista, Director of Khudabakhsh Library

खुदाबख्श लाइब्रेरी की निदेशक डॉ. शाइस्ता


शाइस्ता के कार्यभार संभालने के साथ बंद पड़ी लाइब्रेरी की त्रैमासिक पत्रिका का प्रकाशन शुरू हो चुका है. इस्लाम से लेकर हिंदू, सिख, जैन सहित 30 पुस्तकों को भी प्रकाशित किया गया है. ताकि एक दूसरे से दूरी न रहे और सभी धर्म को समझने में आसानी हो. सेमिनार का सिलसिला फिर से परवान चढ़ रहा है. गांधी, मौलाना आजाद, गुरुनानक, सर सैयद, बेदिल और सूफीइज्म आदि पर अब तक कुल 20 लेक्चर का आयोजन हो चुका है. कोरोनाकाल में भी खुदाबख्श लाइब्रेरी अपने योगदान से ठहर सी गई जिंदगी को रौशन करने में जुटी है.