जवानों को प्रणामः पाकिस्तान के लिए कारगिल एक झन्नाटेदार सबक

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 26-07-2021
टाइगर हिल की जीत
टाइगर हिल की जीत

 

नई दिल्ली. भारत और पाकिस्तान के बीच सैन्य टकराव का राजनीतिक और राजनयिक तनावों का इतिहास रहा है. विभाजन के पालने से पैदा हुए पाकिस्तान के लिए पड़ोसी की भूमिका निभाना हमेशा मुश्किल रहा है. इसका एक कारण पाकिस्तान की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई का दबदबा और कश्मीर की आड़ में आतंकवाद का खेल भी है.

आजादी के बाद से दोनों देशों के बीच 1965 और 1971 में दो बड़े युद्ध लड़े गए, जिनमें पाकिस्तान की हार हुई, तो पाकिस्तान ने अपनी रणनीति बदल दी. वह सैन्य मुकाबले के बजाय आतंक का खेल खेलने लगा. सीमा पार से तोड़फोड़ और आतंकवाद का प्रसार शुरू हुआ.

कारगिल की लड़ाई उसी खेल और साजिश का हिस्सा थी.

पाकिस्तान के लिए त्रासदी यह थी कि उसे कारगिल में अपमान के अलावा और कुछ हासिल नहीं हुआ.

पाकिस्तान के नापाक मंसूबों को नाकाम हुए दो दशक हो चुके हैं. इसी दिन भारतीय सैनिकों ने दांत पीसकर पाकिस्तानी सेना को परास्त किया था, लेकिन उस युद्ध को लड़ने वालों के जेहन में युद्ध की यादें आज भी ताजा हैं.

साजिश के तार और शुरुआत

पाकिस्तान की सबसे बड़ी साजिश बटालिक पहाड़ी पर रची गई थी, जहां से 1999 में कारगिल युद्ध शुरू हुआ था, क्योंकि वहां न तो सेना थी और न ही खुफिया एजेंसियां. इसी का फायदा उठाकर पाकिस्तानी सेना घुसपैठियों के रूप में भारत में घुस आई थी. पाकिस्तान अपनी सेना के साथ आतंकियों को यहां तक ले आया था.

नाम था ऑपरेशन विजय

कारगिल युद्ध को ऑपरेशन विजय के नाम से भी जाना जाता है. यह भारत और पाकिस्तान के बीच सशस्त्र संघर्ष है, जो मई और जुलाई 1999 के बीच कश्मीर के कारगिल जिले में हुआ था. पाकिस्तानी सैनिकों ने तब भारत-पाकिस्तान सीमा पार करने और भारतीय भूमि पर कब्जा करने की कोशिश की. इसके लिए उसने कश्मीरी आतंकियों की मदद ली थी. पाकिस्तान का मकसद इस घुसपैठ के जरिए भारतीय सेना को सियाचिन ग्लेशियर से हटाना था.

चरवाहे की छठी इंद्रिय

पाकिस्तानी घुसपैठ को किसी सैनिक या मुखबिर ने नहीं, बल्कि उस इलाके के एक चरवाहे ने पकड़ा था, जिसने घुसपैठ को देखा था, उसका नाम ताशी है. उसने भारतीय सेना को इसकी सूचना दी, जिसके बाद भारतीय सेना हरकत में आई.

उसके आठवें दिन कारगिल में युद्ध छिड़ गया, लेकिन इस युद्ध में दुश्मनों को पहाड़ियों की ऊंचाई का फायदा मिल रहा था. ऐसे में भारतीय सैनिकों ने तोप के गोले दागने शुरू कर दिए.

बोफोर्स का पहला प्रयोग

टाइगर हिल पर कब्जा करने वाले पाकिस्तानी सैनिकों और आतंकवादियों के खिलाफ युद्ध में भारतीय सेना ने पहली बार बोफोर्स तोपों का इस्तेमाल किया. आज ही के दिन 26 जुलाई 1999 को भारत ने कारगिल में पाकिस्तान को हराया था. करीब 60 दिनों तक चली यह लड़ाई बर्फीले इलाकों में भारतीय सेना की वीरता और साहस की मिसाल है.

पाकिस्तान के हताहत

कारगिल युद्ध पाकिस्तान द्वारा शुरू किया गया था, लेकिन उसे भारी कीमत चुकानी पड़ी. पाकिस्तान ने 2,000 से अधिक सैनिकों को खो दिया और 1965 और 1971 के युद्धों की तुलना में अधिक नुकसान हुआ. हालांकि, मारे गए पाकिस्तानी सैनिकों की संख्या की आधिकारिक तौर पर पुष्टि नहीं की गई है.

लंबे युद्ध की तैयारी थी लेकिन

कारगिल युद्ध पाकिस्तान के धोखे की एक नई कहानी है. रातों रात, पाकिस्तानी सैनिकों और आतंकवादियों ने टाइगर हिल पर कब्जा कर लिया. उस ऊंचाई पर, एक बड़ी आपूर्ति थी, जिसका अर्थ है कि वे किसी तरह एक लंबे युद्ध के लिए तैयार थे.

इस बीच, 3 मई, 1999 को, जब भारतीय सैनिकों की एक टुकड़ी पहुंची, तो पाकिस्तानी सैनिकों ने उन्हें नुकसान पहुंचाने की कोशिश की, जिसमें पांच भारतीय सैनिक मारे गए.

इसके बाद भारत को एहसास हुआ कि यह कोई मामूली घुसपैठ नहीं, बल्कि इलाके पर कब्जा करने की तैयारी थी.

भारतीय सेना ने एक रणनीति विकसित की और पाकिस्तानी सेना को सबक सिखाने के लिए उसके खिलाफ एक ऑपरेशन चलाया, जिसे ऑपरेशन विजय नाम दिया गया.

भारतीय सेना और वायु सेना ने पाकिस्तान के कब्जे वाले क्षेत्रों पर हमला किया और आखिरकार लगभग 60 दिनों में भारत की जीत के साथ युद्ध समाप्त हो गया.

यह एक चुनौती थी

कारगिल युद्ध भारतीय सेना के लिए कठिनाइयों से भरा था. पाकिस्तानी सैनिकों ने ऊंची पहाड़ियों पर कब्जा कर लिया था, जहां गोला-बारूद गिराना मुश्किल था. हमारे सैनिक वहीं छिपे हुए थे और उनका काफी नुकसान हो सकता था. भारतीय सैनिकों को कवर के नीचे या रात में शीर्ष पर पहुंचना था, जो एक बहुत ही खतरनाक काम था. फिर भी जवानों ने हार नहीं मानी और हिम्मत दिखाई और पाकिस्तान के नापाक मंसूबों को नाकाम कर दिया.

वायुसेना की अहम भूमिका

कारगिल युद्ध में हवाई और जमीनी युद्ध ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. भारतीय वायु सेना ने पाकिस्तान के खिलाफ मिग-27 और मिग-29 का इस्तेमाल किया और जहां भी पाकिस्तान ने कब्जा किया वहां बम गिराए. साथ ही आर-77 मिसाइलों से हमला किया. इस दौरान बड़ी संख्या में गोले दागे गए.

दो सप्ताह से अधिक की लड़ाई के लिए, संघर्ष इतना तीव्र था कि हर मिनट एक राउंड फायर किया गया. 60 दिनों की लड़ाई में 527 भारतीय सैनिक मारे गए और लगभग 1,300 घायल हो गए. 2,000 से अधिक पाकिस्तानी सैनिक मारे गए. हालांकि, पाकिस्तान ने कभी भी इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं की है.