मलिक असगर हाशमी / गिरिजा शंकर शुक्ला / नई दिल्ली / हैदराबाद
हैदराबाद के रुद्रेश्वर (रामप्पा) मंदिर को यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल कर लिया गया है. यह निश्चित ही जश्न मनाने का समय है. इससे निश्चित तेलंगाना विश्व पर्यटन स्थलों के वैश्विक मानचित्र पर आ जाएगा. मगर इसके साथ ही सवाल भी उठने लगे हैं.
पूछा जा रहा है कि आखिर राज्य सरकार ने चारमीनार और कुतुब शाही मकबरे जैसे अन्य समान रूप से महत्वपूर्ण स्मारकों को पर्यटन के विश्व मानचित्रों पर लाने की अब तक गंभीर पहल क्यों नहीं की ?
चारमीनार, गोलकुंडा किला, कुतुब शाही मकबरे को मनोनीत करने के पहले भी प्रयास होते रहे हैं. 430 साल पुराने चारमीनार, हैदराबाद के संस्थापक स्मारक और गोलकोंडा किले को नामांकित करने का प्रयास किया गया था, पर परिणाम सिफर रहा.
इसकी कई वजह बताई गई. तब तत्कालीन सरकार को उनकी स्थिति सुधारने की सलाह दी गई थी. मंदिर के साथ दक्कन (कर्नाटक के बीजापुर और गुलबर्गा के स्मारकों सहित) के स्मारकों के हिस्से के रूप में कुतुब शाही मकबरे को भी यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों के रूप में नामित किया जाना था, पर इसे लिस्ट में जगह नहीं मिल पाई.
वातस्वत में अतिक्रमण और दूसरी वजहों से यदि चारमीनार और गोलकुंडा किले को छोड़ भी दिया जाए तो कुतुब शाही मकबरे संभवतः यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रूप में नामांकित होने के लिए आदर्श स्थानों में से एक हैं. तीनों स्मारकों के लिए डोजियर तैयार किए जाने के बावजूद, इसे एक तरफ रख दिया गया और काकतीय-युग के रामप्पा मंदिर को चुना गया.
यह कहना गलत होगा कि रामप्पा मंदिर विश्व धरोहर स्थल होने के लायक नहीं है. यह डिजर्व करता है. हालांकि, यह अवश्य कहा जा सकता है कि हैदराबाद में और भी पर्यटन केंद्र हैं. जैसे मध्ययुगीन युग और बाद की तारीख संरचनाएं में चारमीनार, गोलकोंडा किला, चौमहल्ला महल, निजाम संग्रहालय, सालार जंग संग्रहालय, झाम सिंह मंदिर , बादशाही आशुरखाना आदि
सरकार को हैदराबाद में पर्यटकों को अधिक से अधिक संख्या में आकर्षित करने के लिए यहां के स्मारकों को यूनेस्को की सूची में शामिल करने को गंभीर प्रयास करना चाहिए था. अब देखना है कि क्या रामप्पा मंदिर राज्य के अन्य स्थानों से पर्यटकों को अपनी ओर खींच पाता है या नहीं ?
तेलंगाना के कुतुब शाही का युग गोलकुंडा किला, कुतुब शाही मकबरे और चारमीनार (हैदराबाद की नींव, 1591 में रखी गई थी) भी विश्व धरोहर स्थल का दर्जा पाने के लिए अस्थायी सूची में हैं. मनोनीत स्थलों का मूल्यांकन इंटरनेशनल काउंसिल ऑन मॉन्यूमेंट्स एंड साइट्स और इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर द्वारा किया जाता है. इनके सभी चरणों की जांच के बाद, विश्व धरोहर समिति साइट मूल्यांकन करती.
रामप्पा मंदिर, एक काकतीय-युग की विशेषता
वास्तव में, 13 वीं शताब्दी का मंदिर, जिसका नाम उनके वास्तुकार रामप्पा के नाम पर रखा गया था. पिछले साल तक इसके परिसर में चल रहे जीर्णोद्धार कार्यों के कारण यह प्रस्तुत करने योग्य स्थिति में नहीं था. इंटरनेशनल काउंसिल ऑन मॉन्यूमेंट्स एंड साइट्स ने 2019 में अपनी प्रारंभिक यात्रा के बाद साइट को लेकर नौ मुद्दे उठाए थे, जिसे बाद में ठीक कर लिया गया.
हैदराबाद से करीब 210 किलोमीटर दूर स्थित रामप्पा मंदिर 807 साल पुराना है. यह पालमपेट गांव में है. इसका निर्माण काकतीय काल के दौरान वर्ष 1214 के आसपास, राज्य के एक सेनापति द्वारा किया गया था. मंदिर पर वास्तुकला की गहरी छाप है. इसे हम यूं भी कह सकते हैं कि यह ‘पत्थर में सिम्फनी‘ है. यह भगवान रुद्रेश्वर को समर्पित है.
इसका गोपुरम (ऊपरी भाग) हल्की ईंटों से बनाया गया है. इसका निर्माण सैंडबॉक्स तकनीक से किया गया है, जो इसे बहुत ही अनूठा बनाता है. 17 देशों के समर्थन के बाद रामप्पा मंदिर को विश्व धरोहर स्थल का दर्जा दिया गया है.
‘द हिंदू’ अखबार के मुताबिक, इससे पहले, विश्व धरोहर स्थल नामांकन के रूप में ‘ग्लोरियस काकतीय मंदिर और गेटवे - रुद्रेश्वर (रामप्पा) मंदिर, पालमपेट‘ परीक्षा को एजेंडा पेपर में टाल दिया गया था. हालाँकि, 25 जुलाई की बहुमत साइट के बकाया मूल्य के बारे में भारत के दृष्टिकोण के इर्द-गिर्द घूमती है.
कुतुब शाही मकबरे या चारमीनार क्यों रहे अछूते
एक साल पहले 44 स्मारकों की यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल की अस्थायी सूची बनाई थी. आरोप है कि राज्य सरकार का ध्यान केवल रामप्पा मंदिर तक ही सीमित रहा, जबकि तेलंगाना के आईटी मंत्री ने कहा था कि वे बाकी स्मारकों को भी शामिल करने के लिए काम करेंगे.
इसमें गोलकुंडा और चारमीनार भी शामिल था. दरअसल, करीब एक दशक पहले चारमीनार के नामांकन को लेकर उसके आसपास के अतिक्रमण का मसला उठा था, जिसे अब तक दूर नहीं किया गया है.
यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त होने के लिए, एक स्मारक को कई जांच से गुजरना पड़ता है. इसमें शौचालय और आसपास पार्किंग की व्यवस्था होनी चाहिए. किसी तरह का अतिक्रमण नहीं होना चाहिए.
रामप्पा मंदिर, चारमीनार और गोलकुंडा किला भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के तत्वावधान में आते हैं, जबकि कुतुब शाही कब्रों को कुली कुतुब शाह विकास प्राधिकरण और तेलंगाना विरासत विभाग द्वारा नियंत्रित किया जाता है.