क्या इतिहास की किताबों में मशरिकी, जिन्ना और गांधी के बारे में सच लिखा है भाग - 1

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 31-08-2022
क्या इतिहास की किताबों में मशरिकी, जिन्ना और गांधी के बारे में सच लिखा है भाग - 1
क्या इतिहास की किताबों में मशरिकी, जिन्ना और गांधी के बारे में सच लिखा है भाग - 1

 

नसीम युसूफ

दुनिया भर के लोगों को यह विश्वास दिलाया गया है कि एम.ए. जिन्ना ने पाकिस्तान बनाया, कि एम.के. गांधी भारत की आजादी के हिमायती थे और अंग्रेजों ने अल्लामा मशरिकी के खाकसार आंदोलन को कुचल दिया. वास्तविकता यह है कि अल्लामा मशरिकी भारत को एक साथ रखने के लिए काम करने वालों के साथएकजुट थे, जबकि जिन्ना और गांधी की राजनीति शासकों के हाथों मेंथी और जिसकी परिणति विभाजन में हुई.

यह लेख मशरिकी और भारत के इतिहास में अन्य नेताओं की भूमिका के संबंध में फैलाए गए झूठों कोउजागर करने के संबंध में हैं.

अधिकांश लोगों को यह एहसास नहीं है कि ब्रिटिश शासक केवल एक भारतीय नेता को स्वीकार करने वाले थे जो ब्रिटिश नीतियों को लागू करने के लिए तैयार होता. अतीत के ज्ञान और राजनीति के कामकाज की समझ रखने वाला कोई भी व्यक्ति जानता होगा कि किसी भी भारतीय को वायसराय के लॉज में प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी या ब्रिटिश हितों की सेवा के लिए सहमत हुए बिना शासकों के साथ उनकी तस्वीरें खींची (ब्रिटिश नियंत्रित मीडिया में समाचार प्रसारित) जाने की भी अनुमति नहीं थी.

अल्लामा मशरिकी ब्रिटिश एजेंडे का पालन करनेवाले व्यक्ति नहीं थे. उन्होंने ब्रिटिश भारत को स्वतंत्रता दिलाने के लिए 1930 में खाकसर तहरीक की स्थापना की.1930 के दशक के अंत तक, मशरिकी ने पूरे भारत में बड़े पैमाने पर अनुयायी विकसित कर लिए थे और तहरीक ने कई अन्य देशों में भी शाखाएँ बनाई थीं.अकेले भारत मेंतहरीक की वर्दीधारी सदस्यता "पचास लाख" से अधिक थी.

यह भारत में सबसे अनुशासित और अच्छी तरह से प्रशिक्षित निजी सेना बन गई थी.1939 में, मशरिकी के आदेश पर, खाकसर तहरीक ने संयुक्त प्रांत (यूपी) की सरकार को सफलतापूर्वक पंगु बना दिया और सर हैरी ग्राहम हैग (यूपी के गवर्नर) को स्थिति को सामान्य करने के लिए खाकसर तहरीक के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर करना पड़ा.

डॉ. शान मुहम्मद ने अपनी पुस्तक भारत में खाकसर आंदोलन में लिखा है, "खाकसार तहरीकतीस के दशक के अंतिम वर्षों में एक सबसे शक्तिशाली संगठन बन गया और क्षेत्र पर हावी हो गया..." अपने चरम पर, मशरिकी के भाषणों में नियमित रूप से 50हजार से एक लाख तक लोग मौजूद होते थे.

इतनी शक्ति के साथ, मशरिकी आगे बढ़े और 1940 में ब्रिटिश शासन को गिराने का फैसला किया.इससे ब्रिटिश हलकों में खलबली मच गई.19 मार्च 1940 को बड़ी संख्या में खाकसारों की हत्या कर दी गई और मशरिकी, उनके पुत्रों और अनुयायियों को गिरफ्तार कर लिया गया.

अल-इस्लाह पत्रिका सहित खाकसर गतिविधियों और प्रकाशनों पर प्रतिबंध लगा दिया गया/जब्त कर लिया गया और उसके बाद सरकार ने भारत के विभिन्न हिस्सों में हजारों खाकसारों को गिरफ्तार करने के लिए तेजी से कदम उठाया.

मशरिकी को लगभग दो साल तक बिना किसी मुकदमे के जेल में रखा गया था और उसके बाद उसकी गतिविधियों को एक और साल के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया था; जेल में रहते हुए, मशरिकी और खाकसरों को प्रताड़ित किया गया. लेकिन यह दमन और क्रूरता अंततः शासकों के खिलाफ ही साबित हुई.मशरिकी का अनुयायी बढ़ते गए और स्वतंत्रता आंदोलन अगले स्तर तक बढ़ गया. 21 मार्च, 1940 को लॉर्ड लिनलिथगो (भारत के वायसराय) ने एक पत्र में लॉर्ड जेटलैंड (भारत के राज्य सचिव) को लिखा था कि "अल्लामा मशरिकी का खाकसार आंदोलन कितना बड़ा संभावित खतरा बन गया है."

वायसराय, प्रांतीय गवर्नरों और अन्य उच्च अधिकारियों के पत्राचार ने बार-बार दिखाया कि वे खाकसरों से डरते थे. 6 जून, 1941 को, लॉर्ड लिनलिथगो ने कनिंघम (एनडब्ल्यूएफपी के गवर्नर) को लिखा, "मुझे परिषद में एक विस्तृत चर्चा के बाद काफी स्पष्ट महसूस हुआ कि कार्रवाई का कोई विकल्प नहीं था

यानी, पूरे भारत में तहरीक पर प्रतिबंध] जिसे गृह विभाग ने अब सभी प्रांतों से लेने को कहा है. मैंने हमेशा इस आंदोलन को संभावित रूप से बहुत खतरनाक माना है. यह अच्छी तरह से व्यवस्थित है; अच्छी तरह से अनुशासित; और यह भूमिगत काम करता है." 19 जुलाई, 1941 को, लिनलिथगो (भारत के वायसराय) ने फिर से हैलेट (यूपी के गवर्नर) को एक नोट में कहा कि वह अपने दृष्टिकोण पर "अडिग" रहे कि तहरीक "एक पूरी तरह से खतरनाक संगठन था ..." वयोवृद्ध पत्रकार सैयद शब्बीर हुसैन भी अपनी पुस्तक (अल-मशरिकी) में पुष्टि की है कि "...मशरिकी को अंग्रेजों द्वारा उपमहाद्वीप में सबसे खूंखार व्यक्ति माना जाता था." दूसरे शब्दों में, मशरिकी ब्रिटिश नीतियों का पालन करने वाले व्यक्ति नहीं थे.

जारी...

(यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं और उनसे आवाज- द वॉयस की सहमति आवश्यक नही है)