आवाज- द वॉयस/ नई दिल्ली
हिंदी फिल्मों में किरदार की लंबाई चाहे जितनी रही हो, पर नायिकाओं की अहमियत काफी रही है. आज हम आपको बता रहे 1940 के दशक की कुछ ऐसी नायिकाओं के बारे में, जिन्होंने उस वक्त अपनी अदाकारी और अपने सौंदर्य से काफी सनसनी पैदा की थी.
मुमताज शांति
मुमताज शांति चालीस के दशक की बहुत प्रतिभावान अभिनेत्री थीं. हिंदी फिल्मों में उनका डेब्यू 1942 में वसंत से हुआ था. लेकिन अशोक कुमार स्टारर फिल्म ‘किस्मत’उनके करियर की बेस्ट फिल्म थी. यह फिल्म 1943 में रिलीज हुई थी और सुपर डुपर हिट थी. उसका रिकॉर्ड बाद में जाकर शोले ने तोड़ा था.
1948 में मुमताज शांति ने घर की इज्जत नाम की फिल्म में काम किया था, जिसमें नौजवान दिलीप कुमार थे.
मुमताज शांति
नरगिस
हिंदी फिल्मों की मशहूर अभिनेत्री नरगिस को उनके भाव-प्रवण अभिनय के लिए कौन नहीं जानता. उनकी पहली फिल्म तकदीर थी. बाद में, 1949 में राज कपूर के साथ बरसात आई थी. इसके अलावा 1951 में राज कपूर के साथ आवारा, 1955 में श्री 420, सुनील दत्त और राजकुमार के साथ 1957 में मदर इंडिया और 1967 में रात और दिन जैसी फिल्मों से नरगिस ने अपनी कामयाबी का परचम लहराया था.
नरगिस के साथ राज कपूर को जोड़ी परदे पर बहुत जमती थी
सुरैया
सुरैया का जन्म 15 जून 1929 को हुआ था और उनका पूरा नाम सुरैया जमाल शेख था. सुरैया न सिर्फ शानदार अभिनेत्री थीं, बल्कि उनके गले में भी सरस्वती का वास था. 1940 के दशक में वह बेहद चर्चित और हिट अभिनेत्री थीं. उनके बाद ही नरगिस और मधुबाला का दौर शुरू हुआ था.
1936 से 1963 के बीच के अपने करियर में सुरैया ने 67 फिल्मों में काम किया था और 338 गाने गाए.
मल्लिका-ए-हुस्न सुरैया
सुरैया ने बतौर बाल कलाकार पहली पर अभिनय किया. उनकी पहली फिल्म 1936 में रिलीज हुई फिल्म मैडम फैशन थी, जिसका निर्देशन जद्दनबाई (नरगिस का मां) ने किया था. सुरैया ने बतौर नायिका पहली फिल्म ताजमहल की थी, जिसमें वह मुमताज बनी थीं. अपने शबाब के दिनो में उन्हें मल्लिका-ए-हुस्न और मल्लिका-ए-अदाकारी कहा जाता था.
बेगम पारा
बेगम पारा एक प्रतिष्ठित जज मियां एहसान-उल-हक की बेटी थीं. बेगम पारा ने अपनी पढ़ाई अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में की थी. उनके भाई बंबई में रहते थे और वहां जाकर बेगम पारा को फिल्मी दुनिया रास आ गई. बेगम पारा को देखकर शशधर मुखर्जी और देविका रानी ने उन्हें भूमिका ऑफर की. उनकी पहली फिल्म चांद थी, जिसका निर्माण पुणे के प्रभात स्टूडियो ने किया था. यह फिल्म 1944 में रिलीज हुई थी और इसके हीरो थे प्रेम अदीब. उस फिल्म में सितारा देवी ने वैंप की भूमिका निभाई थी. उन दिनों बेगम पारा को मेहनताने के 1500 रुपए मिलने लगे थे.
ग्लैमर डॉलः बेगम पारा ने परदे पर उन्मुक्त भूमिकाएं निभाई
बेगम पारा और उनकी भाभी ने मिलकर छमिया नाम की फिल्म का निर्माण किया. वह फिल्म चली पर बेगम पारा कबी हीरोईन नहीं बन पाईं क्योंकि उनकी बड़ी स्कैंडलस इमेज बन गई थी. इसलिए उन्हें फिल्मों में हमेशा ग्लैमर डॉल के किरदार मिलते रहे.
1946 में सोहिनी महिवाल, 1947 में जंजीर, नील कमल, मेहंदी, सुहाग रात जैसी फिल्में आईं. पारा की अंतिम फिल्म 1956 में कर भला थी. बाद में, 2007 में जाकर बेगम पारा ने संजय लीला भंसाली की फिल्म सांवरिया में सोनम कपूर की दादी की भूमिका निभाई थी.
नूरजहां
नूरजहां को सिने उद्योग में मल्लिका-ए-तरन्नुम भी कहा जाता है. ब्रिटिश भारत में फिल्मी करियर शुरू करने के बाद नूरजहां बाद में पाकिस्तान चली गईं. उन्होंने छह दशकों तक फिल्मों में काम किया. एक वक्त में वह पूरे दक्षिण एशिया में सबसे प्रभावशाली गायिकाओं में गिनी जाती थीं. हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत पर उनकी गहरी पकड़ थी.
मल्लिका-ए-तरन्नुम नूरजहां
उन्होंने प्राण के साथ खानदान जैसी फिल्म में काम किया था, जो 1942 में रिलीज हुई थी. बतौर नायिका यह उनकी पहली फिल्म थी. इस फिल्म की कामयाबी के साथ नूरजहां कलकत्ते से बंबई शिफ्ट हो गईं. उनकी दूसरी फिल्म 1943 में रिलीज दुहाई थी, जिसमें उनकी आवाज दूसरी हीरोइन के लिए भी इस्तेमाल की गई थी. इनके अलावा, नूरजहां ने बड़ी मां (1945), जीनत, गांव की गोरी, अनमोल घड़ी, और जुगनू जैसी फिल्मों में काम किया.