75 का भारतः देश के निर्माण के पहले पांच साल

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] • 1 Years ago
भाग्यवधू से वादा करते नेहरू, 14-15 अगस्त की मध्य रात्रि, 1947
भाग्यवधू से वादा करते नेहरू, 14-15 अगस्त की मध्य रात्रि, 1947

 

मंजीत ठाकुर

आजादी जब आई तो साथ में विपदा लेकर आई थी. यह विपदा थी विभाजन की त्रासदी. राष्ट्र को अपने देश में आए शरणार्थियों के लिए रोटी, कपड़े और मकान मुहैया कराना था. देश में आजादी हासिल करने की खुशी तो थी, लेकिन लाखों लोगों की मौत का गम भी था.

बेशक, पिछले पचास साल से कांग्रेस पार्टी ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आंदोलन किया था. लेकिन उस वक्त बेशक, कांग्रेस कोई सियासी पार्टी नहीं, बल्कि राष्ट्रीय आंदोलन, देश की जनता की आकांक्षाओं का प्रतीक था. लेकिन अब चुनौती अलग थी. अब राष्ट्रीय आंदोलन की प्रतीक रही पार्टी को सियासत करनी थी. राष्ट्रीय आंदोलन में अपने योगदान का यह पार्टी राजनैतिक नफा उठाने वाली थी और शायद इसलिए गांधी जी चाहते थे कि कांग्रेस का बतौर पार्टी विघटन कर दिया जाए.

भारतीय संविधान के लागू होते ही 1950 से भारत एक गणराज्य बन गया. डॉ. राजेंद्र प्रसाद संविधान के लागू होते ही पहले राष्ट्रपति बने. भारत के शुरुआती नेताओं ने तय किया कि नया गणराज्य समाजवादी और चरित्र में धर्मनिरपेक्ष रहेगा. हालाकिं, उस वक्त संविधान में धर्मनिरपेक्ष या पंथनिरपेक्ष शब्द का उल्लेख नहीं था.

बहरहाल, आजादी के बाद दुनियाभर की मीडिया और प्रमुख राजनैतिक हस्तियों को यह लगता था कि भारत एक स्वाभाविक राष्ट्र नहीं है और कुछ समय में ही इसका बिखराव शुरू हो जाएगा. आजादी के 75 साल के बाद, उन मीडिया रिपोर्ट्स और नेताओं के कयास सिरे से गलत साबित हुए हैं, यह लिखने या कहने की जरूरत नहीं है. असल में, भारत विविधताओं के साथ ही विभिन्न किस्म की जातियों, धर्मों, क्षेत्रीय संस्कृतियों और भाषायी विविधता का देश है इसलिए पश्चिम के पैमाने पर इस तरह के राष्ट्र के अस्त्वित्व की कल्पना भी कठिन थी.

आजादी के ऐन बाद, 1947 में पंडित जवाहर लाल नेहरू अंतरिम सरकार में प्रधानमंत्री बने और सरदार वल्लभ भाई पटेल उनके उप-प्रधानमंत्री. हालांकि, नेहरू के मंत्रिमंडल में श्यामा प्रसाद मुखर्जी भी शामिल थे. जाहिर है, नेहरू ने अंतरिम कैबिनेट में दलगत विविधता बनाए रखने की कोशिश की थी. यह बात दीगर है कि नेहरू वैचारिक रूप से मुखर्जी से बेहद दूर थे और दोनों के बीच यह विभिन्नता कश्मीर और प्रतिरक्षा जैसे मुद्दों पर खुल कर सामने आई.

खासकर, पाकिस्तान ने जिस तरह कबायलियों के वेश में अपने सैनिकों को कश्मीर पर हमला करने भेज दिया था उसपर पंडित नेहरू का रवैया सरदार पटेल को खास पसंद नहीं आ रहा था. इधर, इसके साथ ही सरदार पटेल देश के छोटे-बड़े रजवाड़ों के भारत में विलय के काम में लगे थे और 9 नवंबर 1947 को जूनागढ़ का भारत में विलय हो गया.

1948 में रिसायतों के साथ विलय का काम चलता रहा और भारत के निर्माण की नींव रखी जाती रही. बेशक, हैदराबाद के निजाम पहले खुद को स्वतंत्र बनाए रखने और इसमें नाकाम होने के बाद, पाकिस्तान में शामिल होने की कोशिश करते रहे. उन्होंने तो भारत से युद्ध के लिए तोप और गोले भी पाकिस्तान से मंगवा लिए, लेकिन इतनी उछल-कूद के बाद भी आखिरकार 12 सितंबर को भारत के हल्के बलप्रयोग के बाद हैदराबाद का भारत में विलय हो गया.

इस दौरान संविधान सभा का काम चलता रहा. इसकी मसौदा समिति के अध्यक्ष डॉ. बी.आर. आंबेडकर थे और जो अंतरिम सरकार में कानून मंत्री भी बने. 26 जनवरी, 1950 को संविधान लागू हो गया और इसकी प्रस्तावना में ही, हरेक भारतीय नागरिक को न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की गारंटी दी गई.

संविधान में उल्लिखित मौलिक अधिकारो ने हरेक नागरिक को नागरिक स्वतंत्राएं प्रदान की, जिसमें अभिव्यक्ति, यात्रा, धर्म पालन जैसी स्वतंत्रताओं की लंबी फेहरिस्त है. ब्रिटिश शासन के तहत, हिंदुओं और मुसलमान समुदायों के लिए अलग पर्सनल लॉ थे. हालांकि, बाद में हिंदू कोड बिल लाकर हिंदुओं के लिए पर्सनल लॉ को खत्म कर दिया गया.

हालांकि, संविधान लागू होने के पंद्रह महीनों में ही नेहरू सरकार को इसमें संविधान संधोशन की जरूरत महसूस होने लगी और विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसा करके नेहरू ने नागरिक स्वतंत्रताओं को एक हद तक कम कर दिया. संविधान के इस पहले संशोधन के जरिए ही राजद्रोह कानून को फिर से शामिल कर लिया गया.

1951-52 की सर्दियों में देश में पहले संसदीय चुनाव आयोजित किए गए थे. उस वक्त देश के 85 फीसद से अधिक मतदाता निरक्षर थे और इसलिए हरेक पार्टी को एक चुनाव चिह्न प्रदान किया गया. लोकसभा और विभिन्न विधानसभाओं की कुल 3,800 सीटों के लिए आयोजित इन चुनावों में 17,000 से अधिक उम्मीदवारों ने हिस्सा लिया था और 17.6 करोड़ मतदाताओं में से 60 फीसद से अधिक लोगों ने वोट किया था.