कुतुब शाह के दौर की ऐतिहासिक हयात बख्शी मस्जिद

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 17-09-2021
हयात बख्शी मस्जिद
हयात बख्शी मस्जिद

 

मोहम्मद अकरम/हैदराबाद

हैदराबाद शहर की स्थापना गोलकुंडा के पांचवें शासक सुल्तान मुहम्मद कुली कुतुब शाह ने की थी. उन्होंने अपने शासन मे चार मीनार 1591, मक्का मस्जिद 1694समेत कई ऐतिहासिक धरोहरें बनवाईं. कुतुब शाह के सातवें सुल्तान अब्दुल्ला कुतुब शाह के शासन में उनकी मां हयात बख्शी ने वर्ष 1672में हयातनगर में एक मस्जिद का निर्माण कराया, जो समय के साथ जामा मस्जिद हयात बख्शी बेगम के नाम से मशहूर हो गई.

मस्जिद के निर्माण के 400साल बाद भी यहां कदम-कदम पर इतिहास बोलता है. यहां के कण-कण से शाही खानदान की यादें लोगों के अंदर ताजा हो जाती हैं. गोलकुंडा का किला अपने काले पत्थरों से मुगल बादशाह औरंगजेब के सैन्य आक्रमण की कहानी को बयां करता है. इसके बड़े-बड़े तीन दरवाजों और दीवारों से राजाओं, रानियों, राजकुमारियों, सेनापतियों की जिंदगी जुड़ी हुई हैं.

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अपने वैभव को बयां करते हयात बख्शी मस्जिद के छज्जे और कंगनियां.


कुतुब शाह की यह मस्जिद भारत की सबसे पुरानी मस्जिदों में से एक है. मस्जिद में पांच दोहरे मेहराब और दो शानदार मीनारें हैं. ये मस्जिद उस समय सूरत और मसूलीपट्टनमका मुख्य मार्ग था. इसलिए हयात बख्शी बेगम ने इन शहरों से व्यापार के लिए गोलकुंडा आने वाले व्यापारियों के ठहरने के लिए मस्जिद के परिसर में 134कमरों की सराय बनाई थीं. मस्जिद के परिसर में एक खास जगह बनाई गई थी, जिसे ‘हाथी बावली’ कहते है, जिसमें हाथी भी उतर सकते थे.

 

हैदराबाद टाउन से 17किलोमीटर की दूरी पर मौजूद ऐतिहासिक इस मस्जिद की एक कमेटी बनाई गई है, जिसके माध्यम से लोग मस्जिद के रखरखाव करते हैं. पांच वक्त की नमाज जमात के साथ होती है, जिसमें आस-पास के लोग बड़ी संख्या मे शामिल होते हैं.

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हयात बख्शी मस्जिदः मीनारों की भव्यता देखते ही बनती है.


इस बारे मे मस्जिद कमेटी के अध्यछ चांद पाशा कहते है, “आज से बीस साल पहले तक यहां लोग नमाज नहीं पढ़ते थे. सिर्फ ईद और बकरीद की नमाज होती थी. इस का कारण है कि संग्रहालय विभाग द्वारा इजाजत नहीं थी, लेकिन मौलवी मोहम्मद रफीक और मोहल्ले के लोग जमा हुए और मांग करने के बाद यहां नमाज पढ़ने की अनुमति दी गई, जिससे आज चारों तरफ हरियाली है. साफ-सफाई है. वरना एक वक्त था, जब लोग यहां आने से डरते थे. मस्जिद के अंदर तक बडी-बड़ी घास-फूस हो गई थी. किसी को इसकी चिंता नहीं थी, मगर अब सब बदल चुका है.”

 

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हयात बख्शी मस्जिदः पत्थर उखड़ने और पीले पड़ने लगे हैं. इन्हें मरम्मत की दरकार है.


एक सवाल के जवाब में वह कहते हैं, “हम लोगों ने कई बार सरकार में बैठे लोगों से मस्जिद के अंदर खराब हो रही दीवार को बनाने की मांग की, लेकिन सुनता कौन है. एक नेता को कई बार कहने के बाद उन्होंने यहां कुछ काम करा दिए हैं. वैसे भी यहां किसी तरह का काम करने के लिए संग्रहालय विभाग से इजाजत लेनी पड़ती हैं. कुछ साल पहले नवीनीकरण का काम किया गया, लेकिन पैसे के अभाव से बहुत कम काम हुआ है.”

 

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नमाजियों के आने-जाने से हयात बख्शी मस्जिद गुलजार हो गई है और हरियाली बढ़ गई है.


वहीं स्थानीय शख्स और पुलिस विभाग से रिटायर्डे मोहम्मद अबदूर रहमान कहते हैं, “ये मस्जिद हैदराबाद के मुसलमानों के लिए बड़ी अमानत है. इसकी देखभाल करना हम सबकी जिम्मेदारी है. संग्रहालय के जिम्मे होने से अपनी तरफ से कुछ भी नहीं कर सकते हैं, लेकिन कमेटी अच्छा काम कर रहा है. सरकार को चाहिए कि वह इसकी मरम्मत करा कर पर्यटक स्थल बनाएं, जिससे यहां आने वाले लोग इसकी इतिहास से वाकिफ हो सके.”

 

मालूम हो कि पुरातत्व और संग्रहालय विभाग ने जीर्णोद्धार का काम कुछ साल पहले किया, लेकिन 134 कमरों मे से कुछ ही कारों का नवीनीकरण किया गया है. सरकार को चाहिए कि वह इस धरोहर की नवीनीकरण कर पर्यटन स्थल के रुप मे विकसित करें.