Hindustan Meri Jaan : जो गुलामी के साथ ही महामारी के खिलाफ भी लड़े

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 09-08-2022
Hindustan Meri Jaan : जो गुलामी के साथ ही महामारी के खिलाफ भी लड़े
Hindustan Meri Jaan : जो गुलामी के साथ ही महामारी के खिलाफ भी लड़े

 

हरजिंदर
 
जिस समय देश में आजादी की लड़ाई चल रही थी देश में बहुत सारी दूसरी लड़ाइयां भी चल रहीं थीं. आजादी के सेनानियों को जहां एक तरफ अंग्रेजों से लोहा लेना पड़ रहा था, वहीं वे समाज की कईं कुरीतियों से भी लड़ रहे थे. फिर उन दिनों देश में अकाल से पैदा हुए हालात से भी जूझना था. एक और चीज जिससे लड़ाई लड़ी पड़ रही थी वह थी महामारी.

स्पैनिश फ्लू महामारी की दूसरी लहर 1918 के सितंबर में जब भारत पहंुची तो इसने सबसे ज्यादा लोगों की जान ली. खासकर गुजरात में इसका कहर कुछ ज्यादा ही दिखा.
 
स्वतंत्रता की अनकही कहानी-10

वहां समस्या यह थी कि मानसून में बारिश लगभग न के बराबर ही हुई थी. खरीफ की फसल का बुरा हाल हो चुका था और ऐसी सूरत नजर नहीं आ रही थी कि रबी की फसल ठीक से बोई जा सकेगी.
 
अकाल भयानक होता जा रहा था और पीने तक का पानी लोगों को नहीं मिल पा रहा था. कुछ लेखकों ने तो यहां तक लिखा है कि पानी की चोरी और उसकी लूटपाट आम बात हो चुकी थी.
 
अनाज की कीमतें आसमान की ओर जा रही थीं और सरकार यह तय नहीं कर पा रही थी कि गेहूं का निर्यात रोक देना चाहिए या नहीं. या ऐसे में किसानों से लगान वसूलना चाहिए या नहीं.
 
इन हालात में जब महामारी ने दस्तक दी तो हाहाकार कुछ ज्यादा ही बढ़ गया. यहां तक कहा जाता है कि हर शहर, हर गांव में इतनी बड़ी संख्या में लोगों की जान जा रही थी कि दाह संस्कार के लिए लकड़ियां तक कम पड़ने लगी गईं. दूसरी समस्या यह थी कि महामारी के आतंक के चलते सगे संबंधी तक अंतिम संस्कार से हाथ झाड़ने लगे थे.

देश के बहुत सारे दूसरे हिस्सों की तरह ही गुजरात की समस्या इसलिए भी बड़ी थी कि चिकिस्सा सुविधाएं दिल्ली, बंबई और कलकत्ता जैसे महानगरों के अलावा कहीं भी ठीक-ठाक नहीं थीं.
 
ऐसे में गुजरात के कुछ युवक सामने आए. इनमें से दो भाई थे- कल्याणजी मेहता और कुंवरजी मेहता। इसके अलावा उसी समय एक तीसरा युवक भी सक्रिय हुआ जिसका नाम था दयालजी देसाई.
 
इन तीनों में कईं समान बाते थीं. इन तीनों में कईं बाते समान थीं. तीनों सरकारी नौकरी में थे और फिर उन्होंने तय किया कि उन्हें समाज के लिए कुछ करना है, इसलिए सरकारी नौकरी छोड़ दी.
 
वैसे भी जिस अंग्रेज सरकार को देश से हटा देना चाहते थे उसकी नौकरी करना उन्हें रास नहीं आ रहा था. एक और समान बात थी कि मेहता बंधुओं ने नौकरी छोड़ने के बाद सूरत में एक आश्रम शुरू किया तो दयालजी देसाई ने भी सूरत में ही अपना आश्रम खोल दिया. 
 
freedom
 
मेहता बंधु शुरू में बाल गंगाधर तिलक के विचारों से काफी प्रभावित थे और हिंसा के जरिये स्वराज हासिल करना चाहते थे. कुंवरजी ने तो बाकयादा बम बनाने का प्रशिक्षण तक लिया था, हालांकि इसे आजमाने की नौबत आती इससे पहले ही वे खेड़ा सत्याग्रह के बाद वे गांधी से प्रभावित हो गए.
 
देसाई तो पहले से ही उनके अनुयायी थे.महामारी जब फैलने लगी तो सरकार के हाथ पांव फूल गए और उसने सामाजिक संगठनों से मदद मांगी. ये दोनों ही आश्रम मदद के लिए आगे आए. उन्होंने सबसे पहले चंदा जमा किया और स्वयंसेवकों की भर्ती की.

इसके बाद उन्होंने पहला काम किया बड़ी संख्या में जमा हो गए शवों के दाह संस्कार का. फिर उन्होंने गांव-गांव, घर-घर जाकर लोगों को सफाई की शिक्षा के साथ ही स्पैनिश फ्लू की दवा देनी शुरू की.
 
इसका कोई रिकार्ड नहीं है कि उन्होंने कौन सी दवा दी और उनकी दवा ऐलोपैथिक थी, आयुर्वेदिक, यूनानी या होम्योपैथिक ? हालांकि इससे बहुत ज्यादा फर्क भी नहीं पड़ता क्योंकि उस समय तक किसी भी पैथी में इस रोग की कोई भी प्रमाणिक या रामबाण दवा नहीं थी.
 
लेकिन उनके प्रयासों का असर यह हुआ कि लोगों ने महामारी को दैवीय आपदा मानने के बजाए एक रोग की तरह देखना शुरू कर दिया.उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि थी उन वनवासियों के नजरिये को बदलना जो शहरी दवाओं को तब तक शक की नजर से देखते थे.
 
अपने प्रयासों इन तीनों ने जो प्रतिष्ठा हासिल की और जो जनाधार बनाया वह बाद स्वतंत्रता आंदोलन के बहुत काम आया. कठिन समय में जो लोग साथ आए थे उन्हें जनता ने अपना सच्चा हमदर्द माना. स्वतंत्रता आंदोलन का आधार बनाने में इस विश्वास ने बड़ी भूमिका निभाई.
पहले विश्वयुद्ध के बाद जब अंग्रेज सरकार ने होमरूल के अपने वादे न सिर्फ पूरी तरह नकार दिया और रौलेट एक्ट जैसा सख्त कानून पास कर दिया तो महात्मा गांधी के नेतृत्व में पूरा देश आदोलित हो गया.
 
इस आंदोलन में ये तीनो नौजवान गांधी के सबसे विश्वसनीय सहयोगियों में थे. कल्याणजी मेहता और दयालजी देसाई की जोड़ी तो आजादी की लड़ाई के दौरान गुजरात में लंबे समय तक कालू-दालू के नाम से जानी जाती रही.
 
जारी.....

( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )