इस्लाम में लिंग जांच और गर्भपात घिनौना जुर्म !

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 24-10-2022
इस्लाम में लिंग जांच और गर्भपात घिनौना जुर्म !
इस्लाम में लिंग जांच और गर्भपात घिनौना जुर्म !

 

wasayप्रो. अख़्तरुल वासे

मानवता के लिए वह कितना धन्य और मुबारक लम्हा था जब बीबी आमिना ने हुजूर सरवर-ए-कायनात, रहमत-ए-आलम पैगंबर मुहम्मद (सल्ल.) को जन्म दिया,वालिदा की मोहब्बत और ममता भरे जज़्बात के आग़ोश में आपकी परवरिश हुई, गांव के खुले वातावरण में परवरिश के लिए गए तो दाई हलीमा की शफ़क़त और तरबियत आप पर छाई रही। इस तरह बचपन में माँ को सम्मान और एहतराम करके आपने मां को महान स्थान प्रदान किया जो मानव जाति की पहली गोद है.

अपनी बेदाग़ जवानी के आलम में आप ने एक सम्मानित लेकिन अपने से उम्र में बड़ी अरब महिला से शादी की. हज़रत ख़दीजा आपकी पहली पत्नी थीं। बीवी के साथ जो सुलूक, मोहब्बत और लगाव इस क़द्र था कि जिस साल वह आप से जुदा हुईं,
 
आपने उस साल का नाम आमुल-हज़न (ग़म का साल) रखा, और फिर ज़िंदगी भर न केवल हज़रत ख़दीजा को याद करते रहे बल्कि उनकी सहेलियों और बहन के साथ भी अच्छा व्यवहार जारी रखते रहे.
 
पत्नी के साथ रिश्ते और प्यार के इस उच्च उदाहरण को स्थापित करके उन्होंने उसकी वास्तविक स्थिति को स्पष्ट किया कि पति-पत्नी की यह ख़ुशगवार ज़िंदगी प्रथम इकाई तथा मानव जाति की प्रथम एवं आधारभूत ट्रेनिंग सेंटर है.
 
ज़ैनब, रुकय्या, उम्मे कुलसुम और फ़ातिमा ज़ोहरा के वालिद मोहतरम ने अपनी बेटियों के प्रति उच्च स्तर के प्यार और करुणा की मिसाल क़ायम की. इस्लाम और कुफ़्र की पहली जंग जिसमें धर्म और विश्वास के लिए पुत्र और भाई एक दूसरे के खिलाफ़ लड़े, मुश्रिक़ीन की जानिब से क़ैद होकर आने वालों में पैग़ंबर मुहम्मद  के दामाद अबुल-आस भी थे.
 
अपनी रिहाई के लिए ज़मानत के तौर पर अपनी बीवी का हार पेश किया. यह वही हार था जो हज़रत ख़दीजा (रज़ि.) ने अपनी बेटी जैनब को दिया था, बीवी और बेटी की यादगार सामने थी, साथियों से सलाह करके उन्होंने वह हार अपनी बेटी को वापस करा दिया.
 
फिर जैनब की बेटी इमामा मक्का पर विजय के मौक़े पर सज्दे की हालत में आप की पीठ पर चढ़ गई तो अपनी प्यारी नवासी (नातिन) को गर्दन से उतारने के बजाए गोद में लिए नमाज़ में खड़े हो गए, रुक़ैया और उम्मे कुलसुम की उत्तरोत्तर शादी हज़रत उस्मान ग़नी से कर दी, और रुक़ैया बीमार हुईं तो हज़रत उस्मान ग़नी को निर्देश दिया कि वह मदीना में ठहर कर उनकी देखभाल करें.
 
फातिमा ज़ोहरा आपकी सबसे प्यारी बेटी थीं. सबसे छोटी औलाद, जब वह आती थी तो आप उठकर उसे अपने पास लाते, अपने पास बैठाते, उनके माथे को प्यार और स्नेह से चूमते, उनकी शादी हज़रत अली से कराई, हज़रत फ़ातिमा को जन्नत की महिलाओं का मुखिया बताया, उनके बच्चों हसन और हुसैन के प्रति अपार करुणा और प्रेम दिखाया, और इस तरह दिखाया कि पिता बेटियों के हमदर्द बाप कैसे होते हैं.

समाज में स्त्री और पुरुष दोनों को समान दर्जा प्राप्त है, लेकिन उनकी ज़िम्मेदारियां अलग-अलग हैं. दोनों अपनी-अपनी जगह अधूरे हैं और एक दूसरे से मिलकर पूरे होते हैं. दोनों एक दूसरे के लिए अनिवार्य हैं लेकिन जहां कई पहलुओं से मर्द की ज़िम्मेदारियां ज़्यादा हैं, कई दूसरे पहलुओं से औरत की जगह मर्द से बुलंद बना दिया गया है.
 
महिलाओं के विशेष महत्व और स्थिति के कारण, अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने समाज से महिलाओं के साथ अच्छा व्यवहार करने की उनकी इच्छा और सलाह को स्वीकार करने का आग्रह किया और फ़रमाया कि तुममें सबसे अच्छे इंसान वह लोग हैं जो अपनी औरतों के प्रति अच्छे हों, आपने यह भी फ़रमाया कि मैं अपनी औरतों के प्रति तुम सबसे अच्छा हूं.
 
औरत माँ की गोद से लेकर वृद्धावस्था की अंतिम अवस्था तक हर क़दम पर एक विशेष महत्व और अच्छे बर्ताव की हक़दार होती है, और उसको पैग़ंबर मुहम्मद ने ख़ूबसूरत मिसालों के द्वारा स्पष्ट किया है
 
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पैदाइश के साथ ही बच्ची से छुटकारा पाने के तरीक़ों को न केवल अमानवीय बल्कि अल्लाह की नज़र से गिरा हुआ बताया. इसलिए पैदाइश से पहले लिंग जांच करके लड़कियों का गर्भपात घिनावना जुर्म और अमानवीयता वाली सोच को दर्शाती है. 
 
विधवा महिलाओं को समाज में किस प्रकार विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है और उनकी ग़रीबी और परेशानियां अक्सर उन्हें शोषण का शिकार बना देती हैं. अल्लाह के रसूल ने ऐसी विधवाओं को विशेष ध्यान देने योग्य बताया और उनसे उनके लिए लड़ने और उनकी कठिनाइयों को दूर करने का आग्रह किया.
 
ऐसी वंचित महिलाओं के साथ पैग़ंबर मुहम्मद (सल्ल.) की दया और चिंता इतनी थी कि उन्होंने फ़रमायाः ‘‘जो लोग विधवा औरतों की समस्याओं को हल करने और उनकी कठिनाइयों को दूर करने के लिए संघर्ष करते हैं, उनका संघर्ष इतना महान है जैसे अल्लाह की राह में जिहाद.
 
उन्होंने यह भी कहा कि ऐसा व्यक्ति उस व्यक्ति के बराबर है जो हमेशा रोज़ा रखता है और कभी अपना रोज़ा ख़त्म नहीं करता है, और जो हमेशा नमाज़ पढ़ता है और कभी नमाज़ से नहीं रुकता है.
 
अर्थात बड़ी बड़ी इबादात जितने नेक अमल हैं उतना ही नेक अमल यह है कि इंसान विधवा औरतों के दुख-दर्द को दूर करे और उनके काम आए. महिलाओं की शिक्षा को लेकर आप इतने चिंतित थे कि एक बार कुछ महिलाओं ने आकर कहा कि पुरुष हर समय आपसे सीख रहे हैं, और हमें कम अवसर मिलते हैं,
 
आप हमारे लिए एक अलग दिन निर्धारित करें, तो आपने औरतों की शिक्षा के लिए अलग दिन निर्धारित कर दिया. जो औरतें आपसे समस्याएँ पूछने आती थीं, आप उन्हें सभ्यता और गरिमा की शैली में मार्गदर्शन करते थे, और वे हज़रत आयशा और अन्य पत्नियों के माध्यम से उन्हें समस्याएँ और हुक्म बताते.
 
 हम एक ऐसा सामाजिक वातावरण बनाएं जिसमें सभी महिलाएं नेकी और अच्छे शिष्टाचार से सुशोभित हों, यही पैग़म्बर मुहम्मद का हमसे संबोधन है और अच्छाई कर्म से आती है क्योंकिः
 
अमल से ज़िंदगी बनती है, जन्नत भी, जहन्नम भी

ये ख़ाकी अपनी फ़ितरत में न नूरी है न नारी है

(लेखक जामिया मिल्लिया इस्लामिया के प्रो. एमेरिटस (इस्लामिक स्टडीज़) हैं।)