सूफियों के नक्शेकदम पर चलकर हो सकता है कोरोना से बचाव

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 20-01-2021
सूफियों के नक्शेकदम पर चलकर हो सकता है कोरोना से बचाव
सूफियों के नक्शेकदम पर चलकर हो सकता है कोरोना से बचाव

 

गौस सिवानी/ नई दिल्ली

कोरोना वायरस दुनिया के लिए आतंक का प्रतीक बन गया है. चीन से लेकर अमेरिका और ब्राजील से लेकर भारत तक में इसको लेकर बेचैनी है. पुरुष, महिला, बच्चे और बुजुर्ग कोई भी इसके खौफ से अछूता नहीं है. बचाव के लिए मास्क और सामाजिक दूरी के सिद्धांतों का प्रचार किया जा रहा है. अब तक करोड़ों लोग इस वायरस से प्रभावित हो चुके हैं, जिनमें से लाखों की मौत भी हो चुकी है.

महीनों की कड़ी मेहनत के बाद दुनियाभर के वैज्ञानिक इसके टीके विकसित करने में कामयाब तो हुए, लेकिन यह देखा जाना बाकी है कि वायरस की भयावहता की तुलना में टीके कितने प्रभावी हैं. ऐसे मामलों में, केवल सावधानी ही इस घातक बीमारी से बचा सकती है. इस संबंध में बताए गए एहतियाती उपाय सूफियों के यहां सदियों से प्रचलन में हैं. इसलिए यह पूरे विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि कोरोना के प्रसार को सूफीवाद के नक्शेकदम पर चलकर भी रोका जा सकता है.

अब तो लोग ये भली-भांति समझने लग गए हैं कि कोरोना एक विषाणु (वायरस) है, जो मानव शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रभावित करता है. इसके लक्षणों में सर्दी, खांसी, सिरदर्द, बुखार और सांस लेने में कठिनाई आदि शामिल है. विशेषज्ञों के अनुसार, चीन के शहर वुहान में इसकी उत्पत्ति हुई, जिसके बाद चमगादड़ या सांपों के माध्यम से इस वायरस ने मानव शरीर में प्रवेश किया.

जब चीनी शहर वुहान में कोरोना वायरस की मौजूदगी का पता चला, तो कोशिश की गई कि दुनिया भर के अन्य शहरों के परिवहन को इस शहर से काट दिया जाए,लेकिन यह प्रयास पूरी तरह से सफल नहीं हो सका, क्योंकि किसी की समझ में आने से पहले ही यह बीमारी चीन के अंदर और बाहर फैल चुकी थी.

 

महामारी को लेकर सूफियों का मत

महामारी के बारे में सूफियों का मत है कि जब बीमारी किसी क्षेत्र में फैलती है, तो दूसरे क्षेत्रों के लोगों का वहां जाना खुद मौत को दावत देने जैसा है. साथ ही महामारी से प्रभावित इलाके के लोगों को अन्य बस्तियों में नहीं जाना चाहिए, क्योंकि इससे रोग के कीटाणु व्यापक पैमाने पर फैल सकते हैं.

अधिकांश सूफी इस संबंध में पवित्र पैगंबर की एक हदीस का हवाला देते हैं. बुखारी की एक हदीस के अनुसार, हजरत उमर सीरिया के रास्ते में थे. यह बताया गया कि सीरिया में प्लेग का प्रकोप है. कारवां में हजरत अब्दुल रहमान बिन औफ शामिल थे, जिन्होंने हजरत उमर (र.अ.) से कहा कि मैंने पैगंबर को कहते हुए सुना है कि ‘जब आप एक क्षेत्र के बारे में सुनते हैं, जहां एक महामारी फैल गई है, तो उस क्षेत्र में न जाएं, और यदि आप खुद एक ऐसे क्षेत्र में मौजूद हैं, जहां महामारी फैली हुई है, तो वहां से मत भागो.’ यदि इस पद्धति का समय पर और उचित तरीके से पालन किया गया होता, तो दुनिया कोरोना जैसी घातक बीमारी से सुरक्षित होती.

 

कोरोना से बचने का रहस्यमय तरीका

कोरोना को रोकने के लिए आज जिन तरीकों को बताया जा रहा है, उनमें मॉस्क, सामाजिक दूरी और बार-बार हाथ धोना विशेष रूप से शामिल है, ताकि अगर कोई वायरस कहीं से हाथ में आ जाए, तो उसे धोया जा सके और वह शरीर में प्रवेश न कर सके. सूफी शरीर और कपड़ों की शुद्धता पर हमेशा जोर देते रहे हैं. स्नान के अलावा, दिन में पांच बार वजू एक अनिवार्य काम है. इसके अलावा, बार-बार वजू करना भी सूफीवाद की पद्धति में शामिल है, ताकि व्यक्ति हर समय अपने शरीर और विचारों को शुद्ध रख सके. वजू में, कोहनी, चेहरा और पैर सहित दोनों हाथों को धोया जाता है. साथ ही पानी डालने से नाक के अंदर की सफाई होती है. मुंह को भी साफ किया जाता है. वजू से पहले दांतों को दातून से साफ करने का भी हुक्म है. जाहिर है, ये पद्धति अन्य बीमारियों को भी रोकने के लिए भी प्रासंगिक है.

हराम और हलाल भी उपयोगी

अंत में, यह बताना उचित होगा कि सूफियों ने न केवल भोजन के मामले में हलाल और हराम की अवधारणा का पालन किया, बल्कि उनकी धर्मपरायणता ने भी उन्हें बहुत हद तक गलत कामों से बचाया है. इस्लाम ने उन चीजों को वैध बना दिया, जो अच्छी हैं और नुकसानदेह चीजों को अवैध बता दिया है. सांप और चमगादड़ भी उन जानवरों में हैं, जिनके मांस खाना मना है. अगर इन चीजों को शुरुआत में खाने से रोका गया होता, तो कोरोना जैसी बीमारी नहीं आती. दुनिया को इतना नुकसान नहीं उठाना पड़ता.