जामिया निजामिया का फतवा, जिसने अनिल चौहान की सुलेख में फूंकी जान

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 06-07-2021
हैदराबाद के जाने-माने कॉलिग्राफर अनिल कुमार चौहान
हैदराबाद के जाने-माने कॉलिग्राफर अनिल कुमार चौहान

 

शेख मुहम्मद यूनुस / हैदराबाद

जब फतवे का जिक्र आता है, तो ऐसा लगता है कि एक नया विवाद खड़ा हो गया है, लेकिन हैदराबाद के एक गैर-मुस्लिम कलाकार के लिए जारी किए गए फतवे ने उनकी खताती सुलेख कला को नया जीवन दिया, क्योंकि जब शहर में विभिन्न मस्जिदों और मदरसों की दीवारों और मुख्य प्रवेश द्वार पर कुरान की आयतों और प्रार्थनाओं के लेखक के धर्म के आधार पर आपत्ति जताई गई थी, तो प्रमुख इस्लामिक विश्वविद्यालय जामिया निजामिया हैदराबाद ने एक फतवा जारी करके कलाकार के लिए मार्ग प्रशस्त किया. वे हैदराबाद और उसके आसपास की अनगिनत मस्जिदों में अपनी कला के भित्ति चित्र बना रहे हैं.

यह कहानी है हैदराबाद के एक कलाकार अनिल कुमार चौहान की, जिन्हें अब परिचय की आवश्यकता नहीं है. वे एक साधारण चित्रकार से एक मास्टर कैलिग्राफर के रूप में विकसित हुए हैं. उन्होंने अपनी अलग पहचान बनाई है. उनका जीवन एक लंबे और धैर्यवान संघर्ष का व्यावहारिक उदाहरण है. चौहान ने कड़ी मेहनत और शोध के माध्यम से समाज में प्रमुखता हासिल की है और आज वह पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हैं.

चौहान का कहना है कि वे अभी भी कला सीख रहे हैं और उसमें महारत हासिल कर रहे हैं.

नहीं तेरा नशेमन कस्र सुल्तानी के गुम्बद पर

तो शाहीन है बसेरा पहाड़ों की चट्टानों में 

अनिल कुमार चौहान एक गैर-मुस्लिम सुलेखक हैं, जिन्होंने 200 से अधिक मस्जिदों की दीवारों पर कुरान की आयतें ‘अस्मायी मुबारक’ लिखी हैं. वह कला के विशेषज्ञ के रूप में बहुत लोकप्रिय हो गए हैं और विभिन्न स्थानों के लोग उनकी सेवाओं की प्रतीक्षा कर रहे हैं. अनिल कुमार चौहान रमजान के महीने में लगातार व्यस्त रहे.

अनिल कुमार चौहान ने आवाज-द वॉयस के संवाददाता से बात की. उनकी बातचीत के चुनिंदा अंश यहां उपलब्ध हैं.

प्रश्नः बचपन की परिस्थितियां और पेंटिंग को अपनाने के क्या कारण रहे ?

उत्तरः मेरे चाचा और माँ उत्कृष्ट चित्रकार थे. इसीलिए मुझे बचपन से ही पेंटिंग में दिलचस्पी रही है. मेरा परिवार महाराष्ट्र से है, जबकि मेरी ननिहाल हैदराबाद की है. हम हैदराबाद भी चले आए. मैं एक गरीब परिवार से हूं. परिवार का भरण-पोषण करने की जिम्मेदारी के कारण मुझे 10वीं कक्षा के बाद स्कूल छोड़ना पड़ा. मैं ड्राइंग और पेंटिंग में माहिर था. इसलिए मैंने एक पेंटर के रूप में अपना करियर शुरू किया.

प्रश्नः आपने उर्दू और अरबी लिपि की ओर रुख क्यों किया?

उत्तरः 35 साल पहले हैदराबाद में उर्दू भाषा का प्रयोग आम था. व्यावसायिक प्रतिष्ठानों और दुकानों पर उर्दू के साइनबोर्ड अनिवार्य थे. शहर का अधिकांश हिस्सा उर्दू भाषी था और अधिकांश दुकानदार मुसलमान थे. इसलिए स्थिति के अनुकूल खुद को ढालने के लिए उनके लिए उर्दू भाषा से परिचित होना बहुत महत्वपूर्ण था. इसलिए मैंने उर्दू सीखना शुरू किया. मैंने उर्दू पर आधारित अरबी लिखना भी शुरू किया.

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सुलेख में जुटे अनिल कुमार चौहान


प्रश्नः आपने उर्दू कहाँ और कैसे सीखी?

उत्तरः मैं उर्दू भाषा से अपरिचित था, क्योंकि उर्दू भाषा मेरे काम के लिए अपरिहार्य थी. मैंने वैसे भी उर्दू सीखने का फैसला किया. मैंने अपनी मेहनत और शोध के माध्यम से उर्दू सीखी. आज मैंने उर्दू भाषा में महारत हासिल कर ली है. मैं न तो किसी स्कूल में उर्दू सीखने गया और न ही किसी शिक्षक से उर्दू सीखी. शुरुआत में मैंने उर्दू के शब्दों को बिना समझे ही लिखना शुरू कर दिया था. इस दौरान उर्दू भाषा की मिठास के कारण मुझे इससे प्यार हो गया. समय बीतने के साथ, मैं उर्दू अक्षरों और शब्दों को पहचानने लगा. अपने खाली समय में, मैं उर्दू किताबों से शब्दों की नकल करता था और उनका अभ्यास करता था. दुकान के साइनबोर्ड लिखने से भी मुझे उर्दू सीखने में बहुत मदद मिली. मैं कला का विशेषज्ञ था, लेकिन धीरे-धीरे मैंने उर्दू भाषा में भी महारत हासिल कर ली. उर्दू भाषा की मदद से उन्होंने अरबी लेखन पर भी विशेष ध्यान दिया और अरबी के साथ-साथ उर्दू में भी सुलेख की कला में महारत हासिल की.

प्रश्नः आपको मस्जिदों में कुरान की आयतें लिखने का अवसर कैसे मिला?

उत्तरः सुलेख में मेरे कौशल को देखते हुए, लगभग 30 साल पहले, अल-नूर मस्जिद किशन बाग के अधिकारियों ने मुझसे संपर्क किया और मुझे मस्जिद की दीवारों पर कुरान की आयतें लिखने के लिए कहा. तब से लेकर आज तक मैंने 200 मस्जिदों में खलीफाओं के नाम पर कुरान की आयतें ‘अशरा मुबाशरा’ लिखी हैं. जैसे-जैसे समय बीतता गया, मेरा स्वागत और प्रोत्साहन होने लगा.

प्रश्नः क्या गैर-मुस्लिम होते हुए मस्जिदों में कुरान की आयतें लिखने पर किसी को आपत्ति थी?

उत्तरः मस्जिदों में कुरान की आयतों और धन्य नामों के लेखन पर कुछ तिमाहियों से आपत्ति थी और कहा गया था कि एक गैर-मुस्लिम कैसे एक मस्जिद में प्रवेश कर सकता है और कुरान की आयतें और धन्य नाम लिख सकता है. मैं उस समय थोड़ा निराश था. हालाँकि, इस मामले में मैंने प्रमुख इस्लामिक विश्वविद्यालय, जामिया निजामिया, हैदराबाद से संपर्क किया और एक फतवा प्राप्त किया. पवित्रता के लिए मुझे मस्जिदों में कुरान की आयतें लिखने की इजाजत मिल गई. जामिया निजामिया की मंजूरी से सभी आपत्तियां दूर हो गईं और आज मुद्दा यह है कि सभी मुसलमान न केवल मेरी कला को महत्व देते हैं, बल्कि मेरा सम्मान भी करते हैं.

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हैदराबाद की एक और मस्जिद, जो अनिल कुमार चौहान की कला का नमूना है


प्रश्नः क्या आपके परिवार के सदस्य आपकी कला में रुचि रखते हैं?

उत्तरः मेरा परिवार, मेरे बच्चे, मेरी कला में रूचि नहीं रखते हैं. मेरे बच्चे स्नातक हैं और विभिन्न कंपनियों में काम करते हैं. जबकि मेरे छोटे भाई राजेश चौहान ‘खत कुफी’ के विशेषज्ञ हैं. सऊदी अरब में इसकी बहुत मांग है. राजेश चौहान पिछले 25 सालों से मेरे साथ काम कर रहे हैं.

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अनिल कुमार चौहान की कला  


प्रश्नः आप कैलीग्राफी कितनी भाषाओं में करते हैं?

उत्तरः उर्दू और अरबी के अलावा मैं हिंदी, अंग्रेजी, तेलुगु, मराठी और बंगाली में भी परफॉर्म करता हूं. मैंने औपचारिक रूप से किसी स्कूल या मदरसे में शिक्षा नहीं ली है. यह मेरी ईश्वर प्रदत्त क्षमता है, जिसके लिए मैं ऊपर वाले का आभारी हूं.

प्रश्नः क्या आप भविष्य में अपना संग्रह दिखाना चाहते हैं?

उत्तरः हां, भविष्य में, मैं अपना संग्रह प्रदर्शित करने का इरादा रखता हूं. मैं अब अपने संग्रह की प्रदर्शनी की तैयारी में व्यस्त हूं और जल्द ही एक प्रदर्शनी आयोजित करने का इरादा रखता हूं.

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अनिल कुमार चौहान की कला सभी को हैरान करती है


प्रश्नः क्या आपकी सेवाओं को आधिकारिक स्तर पर मान्यता मिली है?

उत्तरः आज तक, मेरी सेवाओं को आधिकारिक स्तर पर मान्यता नहीं मिली है और मेरे सम्मान में कोई बधाई समारोह या पुरस्कार समारोह आयोजित नहीं किया गया है. सांप्रदायिक सद्भाव और गंगा-जामनी सभ्यता को बढ़ावा देने के लिए मेरी सेवाएं सभी के लिए स्पष्ट हैं, लेकिन आज तक मेरी कला और सेवाओं की आधिकारिक स्तर पर सराहना नहीं की गई है.

प्रश्नः युवा पीढ़ी के लिए आपका क्या संदेश है?

उत्तरः मैं युवा पीढ़ी को एक संदेश देना चाहता हूं कि उन्हें अपने पसंदीदा क्षेत्र में महारत हासिल करनी चाहिए. किसी कला या कौशल शिक्षा में कड़ी मेहनत से समाज में एक प्रमुख स्थान प्राप्त करें. उन्होंने कहा कि सभी क्षेत्रों में विशेषज्ञों की मांग है.

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अनिल कुमार चौहान आज अपनी कला की बदौलत पूरी दुनिया में ख्याति के शिखर पर हैं. कोई उनकी कला, कौशल और लेखन की प्रशंसा किए बिना नहीं रह सकता. गौर करने वाली बात है कि कला में महारत हासिल करने के लिए करीब साढ़े तीन दशक की उनकी मेहनत का काफी महत्व है. कला में अपनी महारत के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय पहचान प्राप्त करना एक लंबे समय से अटका हुआ सपना था, जिसे अब साकार किया जा रहा है. उन्होंने अपनी कला की सराहना के लिए सभी का धन्यवाद किया.