शगुफ्ता नेमत
किसी मुस्लिम मुहल्ले से गुजरते समय इस बात पर यकीन करना कि इस्लाम में ‘सफाई को आधा ईमान कहा गया है‘ थोड़ा मुश्किल हो जाता है. मुस्लिम मुहल्ले में फैले कूड़े, उफनती नालियां, घरों के बाहर गंदगी के ढेर कुछ और ही दास्तां बयां करते हैं. सवाल यह है कि आखिर जिम्मेदार कौन है ? शायद हम सभी ! क्योंकि दोषी ठहराना तो आसान है मगर यह किसी समस्या का समाधान नहीं.
पहले की तुलना में मुस्लिम परिवारों में शिक्षा का प्रचार-प्रसार तो हुआ है , पर सफाई के प्रति लापरवाही अब भी उनमें देखने को मिलती है. शायद पीढ़ियों से मिली लापरवाही को वे अब भी ढोते आ रहे हैं. इसके लिए हमें पहले युवा पीढ़ी में जागरूकता लानी होगी, तभी हम इस स्वच्छता अभियान को सफल बना पाएंगे.
जहां तक बात है इस्लाम में स्वच्छता की बात तो इसकी बुनियाद पांच महत्वपूर्ण बिंदुओं पर टिकी है. एक, अल्लाह को एक और हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अल्लाह का भेजा हुआ दूत मानना.
उनकी शिक्षा को मन से स्वीकारना. लोगों तक पहुंचाना.दो, नमाज. नमाज केवल पढ़ना नहीं, उसे कायम करना यानि जिस तरह नमाज पढ़ते समय हम अपने शरीर के अंगों को अल्लाह की इच्छानुसार चलाते है.
आगे भी इसपर अमल करते रहना. नमाज के लिए शारीरिक स्वच्छता को अनिवार्य बनाए रखना. हर नमाज से पहले वजू यानि दांतों, मुहं, नाक, कान, चेहरे हाथों और पैरों को टखनों तक पानी से धोकर रखने का आदेश है. बिना इसके नमाज नहीं होगी.
कुरान के सूरह बकरा आयत नंबर 222 में कहा गया है, “बेशक अल्लाह उनसे मुहब्बत करता है जो उससे माफी मांगते रहते हैं और खूब पाक-साफ रहते हैं. “तीन, रोजा. रोजा भी इस्लाम की बुनियाद चीजों में से एक है.
यह हमें शारीरिक स्वच्छता के साथ मानसिक स्वच्छता का भी संदेश देता है. रोजा हमें आत्म संयम सिखाता है. यानि केवल भूख पर ही नियंत्रण नहीं रखना है, अपनी जुबान पर भी काबू पाना है. गुस्से में भी अपने मानसिक संतुलन को नहीं खोना है. यह तभी संभव है जब हम अपने मन को ईर्ष्या, द्वेष, झूठ, पाखंड, अहंकार से दूर रखेंगे.
पैगंबर मोहम्मद साहब ने फरमाया है कि कोई बंदा तब तक जन्नत में प्रवेश नहीं पा सकता,जबतक कि वह तन-मन से पवित्र न हो. चार, जकात. इस्लाम में अल्लाह की राह में माल खर्च करने को आवश्यक बताया है ताकि हमारे दिलों में माल का जो लालच है उससे पवित्र किया जा सके और इसका विश्वास हो कि जो कुछ हमारे पास है सब उसी का दिया हुआ है.
पांच, हज.इसी प्रकार हज के अवसर पर भी तन, मन दोनों की सफाई पर विशेष बल दिया गया है. कहने का तात्पर्य यह है कि इस्लाम की बुनियाद में भी साफ-सफाई को अहमियत दी गई है.
सवाल यह है कि क्या हमारे ऊपर बस इतनी जिम्मेदारी है कि हम स्वयं को और अपने घरों को साफ-सुथरा रखें, क्या जिस वातावरण में हम सांस ले रहे हैं वहां की हवा को स्वच्छ रखना आवश्यक नहीं है,
यह हमारी जिम्मेदारी नहीं है ? हमें अपने साथ अपने आस- पास के वातावरण के प्रति भी सचेत होना चाहिए. इस्लाम में इसका हुक्म है.एक छोटे से वाइरस कोरोना ने आकर हमें सफाई का कितना पाठ पढ़ा दिया जो हमें हमारी किताबें भी नहीं सिखा पाई. जब हमारी जान पर बन आई तो हम साफ- सफाई को लेकर अत्याधिक सचेत हो गए.
हम सभी अपने आस-पास के वातावरण का एक हिस्सा हैं. जिस प्रकार शरीर के केवल एक अंग की सफाई कर बीमारियों से नहींबचा जा सकता, उसी प्रकार गंदे वातावरण में हम कभी फल- फूल नहीं सकते.
इस सुंदर सृष्टि की
तुम एक रचना हो
तुम केवल अपने नहीं
हर आंखों का तुम सपना हो
हमें विद्यालयों के साथ मदरसा और मस्जिदों में पढ़ रहे बच्चों को भी सफाई के प्रति सचेत करना होगा, तभी परिवर्तन की कुछ आशा की जा सकती है. हमारे धर्म रास्ते में पड़ी एक नुकसानदायक वस्तु को हटाने को भी बड़ा पुण्य माना गया है है.
अगर हम अपने पास के वातावरण को स्वच्छ रखेंगे तो स्वास्थ्य की रक्षा तो होगी ही पुण्य भी कमाएंगे. ऐसे मंे मुसलमानों का फर्ज बनता है कि इस्लाम के अनुयायी होने के नाते खुद भी साफ सुथरे रहें और अपने आसपास के माहौल को साफ रखें.
( लेखिका पेशे से टीचर हैं और यह उनके अपने विचार हैं. )