AWAZ Special ​​फतेहपुरी मस्जिद, गिरती छतें, कमजोर मीनारें हैं बड़े खतरे की निशानी

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 12-10-2021
आवाज खासः ​​फतेहपुरी मस्जिद, गिरती छतें, कमजोर मीनारें हैं बड़े खतरे की निशानी
आवाज खासः ​​फतेहपुरी मस्जिद, गिरती छतें, कमजोर मीनारें हैं बड़े खतरे की निशानी

 

मंसूरुद्दीन फरीदी /नई दिल्ली
 
राजधानी दिल्ली में लाल किला, चांदनी चैक और फतेहपुरी मस्जिद के रूप में ऐतिहासिक स्थलों का गढ़ लंबे समय से राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहा है. लाल किला हमेशा ऊंचा खड़ा रहा. इसकी दीवारों पर तिरंगा इसकी शान है.
 
चांदनी चैक में भी सरकार ने चार चांद लगा दिए हैं, लेकिन तीसरा ऐतिहासिक स्थल, 400 साल पुरानी फतेहपुरी मस्जिद, अब  जर्जर हालत होने के कारण ध्यान देने की जरूरत है. इसकी खस्ताहाल दीवारें और छतें कमजोर प्लास्टर और पत्थर छोड़ने लगे हं.
 
फतेहपुरी मस्जिद के कई हिस्से, फर्श से मीनार तक मरम्मत की जरूरत है. मरम्मत के अभाव में यह अनुपयोगी हो गए हैं. इसके चलते कभी भी बड़ी दुर्घटना  हो सकती है. इसकी वजह से एक हिस्सा बंद करना पड़ा. वास्तव में अब तक केवल पूर्वी हॉल क्षतिग्रस्त थे, लेकिन अब मूल मस्जिद में मेहराब के हिस्से गिरने लगे हैं.
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फतेहपुरी मस्जिद के इमाम मौलाना मुफ्ती मोहम्मद मुकर्रम अहमद ने आवाज-द वाॅयस से कहा, ‘‘अगर ढहती इमारत को नहीं रोका गया तो निशान नहीं बचेगा. कमरों की छतें जर्जर हैं. स्थिति दयनीय है. पूरी बिल्डिंग जर्जर है.
 
दरअसल, 1645-50 में बनने वाली मस्जिद को शाहजहां की पत्नियों में से एक फतेहपुरी बेगम ने मंजूरी दी थी. लाल बलुआ पत्थर से निर्मित, मुख्य प्रार्थना कक्ष, सात धनुषाकार दरवाजों के साथ, एक गुंबद है, जो दो बड़ी मीनारों को जोड़ते हैं।
 
अब तक कैसे बची मस्जिद ?

फतेहपुरी मस्जिद की जर्जर हालत के बारे में मौलाना मुफ्ती मुकर्रम का कहना है कि आज तक अगर मस्जिद में नमाज अदा की जा रही है, तो यह स्थानीय गणमान्य लोगों की भावना के कारण है. उन्होंने बहुत ही मुश्किल समय में मस्जिद का समर्थन किया.
 
उन्होंने कहा कि बल्ली मारान के हाजी मोहम्मद फारूक ने 1972 में मस्जिद में मार्बल बिछाया था. उसके बाद हाजी फिरोज बेलाल, हाजी मोहम्मद सलीम, हाजी सुल्तान बख्श जैसे नाम हैं जिन्होंने मस्जिद को नया जीवन देने में अहम भूमिका निभाई. साफ है कि फतेहपुरी मस्जिद को अब तक सुरक्षित रखने के लिए यह एक निजी प्रयास है.
 
जिम्मेदारी किसकी है ?

मौलाना मुफ्ती मुकर्रम का कहना है कि यह मस्जिद दिल्ली वक्फ बोर्ड की जिम्मेदारी है, जिसने 16 महीने से मस्जिद के कर्मचारियों को वेतन तक नहीं दिया है. हमारा उद्देश्य सभी का ध्यान इस ओर आकर्षित करना है. चाहे वह केंद्र सरकार हो या दिल्ली सरकार अथवा वक्फ बोर्ड. इस वक्त सबसे अहम है मस्जिद को बचाना.
 
मौलाना मुफ्ती मुकर्रम ने कहा कि फतेहपुरी मस्जिद दिल्ली वक्फ बोर्ड के अधीन है, लेकिन पिछले 30 साल से देख रहा हूं कि रखरखाव या मरम्मत के नाम पर क्या हुआ और क्या नहीं ? दिल्ली वक्फ बोर्ड को भी फतेहपुरी मस्जिद की दुकानों से राजस्व मिल रहा है. हालांकि मस्जिद से होने वाला राजस्व उसी मस्जिद में खर्च किया जाना चाहिए, लेकिन यह उसका हिस्सा नहीं लगता है.
 
मौलाना मुफ्ती मुकर्रम ने कहा कि हम चाहते हैं कि इसकी मरम्मत कराने के लिए कोई भी आगे आए.मस्जिद की हालत देखें तो समझ में आ जाएगा कि नींव से लेकर मीनारों तक खतरा कितनी तेजी से बढ़ रहा है.
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जीर्ण-शीर्ण स्थिति को दर्शाने वाले चित्र

 
मस्जिद की जर्जर हालत को लेकर मौलाना मुफ्ती मुकर्रम ने कहा कि ऐसा नहीं है कि यह सब रातों-रात हो गया. लंबे समय से मस्जिद की रखवाली करने वाला वक्फ बोर्ड हालात की जानकारी देता रहा है. अधिकारियों को लिखते रहे हैं,
 
लेकिन कुछ नहीं हुआ. केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी को भी उनकी खराब स्थिति से अवगत कराया गया. उन्होंने भी मदद नहीं की. हालांकि राष्ट्रपति, उपाध्यक्ष और मंत्रियों सहित कई गणमान्य व्यक्ति इस अवसर पर मस्जिद का दौरा करते हैं. फिर भी कोई ध्यान नहीं दे रहा है.
 
आखिरी मरम्मत

मौलाना मुफ्ती मुकर्रम के अनुसार, 2012 में मनमोहन सिंह सरकार के दौरान सरकार ने स्वामी विवेकानंद ट्रस्ट को 150 करोड़ रुपये आवंटित किए थे, जिसमें से 6 करोड़ रुपये पुरातत्व विभाग द्वारा फतेहपुरी मस्जिद की मरम्मत पर खर्च किए गए थे.
 
केके मोहम्मद, आए थे, लेकिन मस्जिद में क्या हुआ. इसके बारे में कहना मुश्किल है, क्योंकि ठेकेदार कुछ दिनों के लिए चला गया था. लोहे की सलाखों को हटा दिया गया और सीमेंट की नक्काशीदार छड़ें लगा दी गईं.
 
 कर्मचारियों का शोषण

मौलाना मुफ्ती मुकर्रम का कहना है कि मस्जिद के कर्मचारियों को पिछले 16 महीने से वेतन नहीं मिला है.दिल्ली वक्फ बोर्ड वेतन देता है, जो दिल्ली सरकार का हिस्सा है. केजरीवाल सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में वेतन दिया था. दूसरी बार सरकार बनी है तो यह क्यों रुकी है? उनका कहना है कि ये कर्मचारी बिना छुट्टी के काम करते हैं. बुनियादी सुविधाओं और लाभों से वंचित हैं.