- कारीगरों ने अपनी, अपने दल या क्षेत्र की अपनी पहचान के लिए बना दिए थे निशान
- आज भी ताजमहल में हजारों पत्थरों पर मैसन मार्क
फैजान खान / आगरा
संगमरमरी इमारत के हुस्न को देखने के लिए यहां दुनिया भर से लोग आते हैं और मोहब्बत की इस निशानी की आगोश में आकर खुद को भूल जाते हैं. वे सिर्फ इमारतों के सरताज ताजमहज की खूबसूरती को ही निहारते रहते हैं. इस खूबसूरत इमारत को बनाने के पीछे कई रोचक तथ्य और कहानी जुड़ी हैं, जिसे हर कोई जानना चाहता है. आज हम आपको उन कारीगरों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनके निशां आज भी ताजमहल में बाकी हैं. ताजमहल को तामीर करने वाले कारीगरों ने पत्थरों पर पहचान के लिए अपने-अपने निशान उकेरे थे, जो आज भी ताजमहल के कई हिस्सों में आपको देखने के लिए मिल जाएंगे. इन मैसन मार्क को अब एएसआई सहेज कर रख रही है.
ताजमहल की तामीर करने वाले कारीगारों को भी इतिहास में जगह मिले, इसके लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने कवायद शुरू कर दी है. एएसआई ने ताजमहल की तामीर करने वाले कारीगरों के मैसन मार्क को सहेजना शुरू कर दिया है.
ताजमहल की तामीर के वक्त कारीगरों ने काम किया. उन्होंने लाल पत्थरों पर अपने क्षेत्रों और अपने दलों के निशान छोड़ दिए. हजारों की संख्या में यह निशान चमेली फर्श और यमुना किनारे की पिछली दीवार के पत्थरों में हैं.
ताजमहल में इस तरह के निशान छोड़े हैं कारीगरों ने
किसी ने क्रॉस बनाया, तो किसी ने चांद, तो किसी ने सितारा, किसी-किसी ने तो प्लस और छोटी लाइन तक बना दी थी. ये पत्थर आज भी ताजमहल के फर्श में लगे हैं.
ताजमहल को तामीर करने में बहुत लंबा वक्त लगा था. मुगल शहंशाह शाहजहां नहीं चाहता था कि जल्दबाजी में कोई काम खराब हो. इसलिए इसे बनाने में पूरे 22साल लगे.
इतिहासकार राजकिशोर राजे के अनुसार जिस जगह पर ताजमहल बना है, वो जयपुर के राजा मान सिंह की संपत्ति थी. शाहजहां ने राजा मानसिंह से इस जमीन को खरीदा था. कारीगरो से ये निशान इसलिए बनवाए गए थे कि कहीं कोई खराब काम करे, तो वो पकड़ में आ जाए. ये निशान संबंधित कारीगर का एक तरह से पहचानपत्र हुआ करता था.
एएसआई के सहायंक संरक्षण अधिकारी एके गुप्ता बताते हैं कि ताजमहल के लिए मैसन मार्क बहुत ही अहम हैं. ये कारीगरों की निशानी है. इन पत्थरों को बहुत मजबूरी में ही बदलते हैं. जब लगता है कि अब ये पूरी तरह से गल गया है और इसका कोई विकल्प नहीं. तब ही दूसरा पत्थर लगाते हैं. उन्होंने बताया कि जब भी ये पत्थर खराब या गल जाता है, तो एएसआई उस पत्थर को फेंकती नहीं है, बल्कि उन्हें रिकॉर्ड में लाया जाता है और उन्हें स्टोर में सहेजकर रखा जा रहा है. आगे चलकर इन्हें म्यूजियम में स्थान दिया जाएगा.