अफगानिस्ताननामा: काबुल में जनरल राबर्ट्स का जवाबी कत्लेआम

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 01-03-2022
अफगानिस्ताननामा: काबुल में जनरल राबर्ट्स का जवाबी कत्लेआम
अफगानिस्ताननामा: काबुल में जनरल राबर्ट्स का जवाबी कत्लेआम

 

अफगानिस्ताननामा: 49

हरजिंदर

कुर्रम घाटी में जनरल राबर्ट्स के नेतृत्व में जो फौज मौजूद थी वह महज काबुल से 50मील की ही दूरी पर थी.घाटी के आस-पास जो अफगान लड़ाके थे वे आमतौर पर काबुल की घटना से अनजान थे और उन्हें यह अहसास भी नहीं था कि ब्रिटिश फौज काबुल की ओर बढ़ सकती है.इसलिए जब ब्रिटिश फौज ने आगे बढ़ना शुरू किया तो वे इसके लिए तैयार ही नहीं थे.फिर भी उन्होंने रास्ता रोकने की कोशिश की लेकिन इसमें वे सफल नहीं हो सके.

काबुल पहंुचना इतना आसान होगा यह शायद जनरल राबर्ट्स ने भी नहीं सोचा होगा.रास्ते में हुई छोटी-मोटी झड़पों को छोड़ दें तो यह फौज लगभग मार्च करती हुई ही काबुल तक पंहुच गई.काबुल पहंुचते ही सबसे पहले याकूब खान को बिना किसी खास लड़ाई के ही गिरफ्तार कर लिया गया.

 पता नहीं यह बात सच है या नहीं, लेकिन कुछ लेखकों ने लिखा है कि जब याकूब को गिरफ्तार किया गया तो उसने कहा- मैं ऐसे मुल्क का बादशाह बनने के बजाए हिंदुस्तान में घसियारा बनना ज्यादा पसंद करूंगा.

जनरल राबर्ट्स को नहीं पता था कि याकूब का हिरासत में लेने के बाद करना क्या है.उसे कोई ऐसा वारिस नजर नहीं आया जिसे काबुल की सत्ता पर बिठाया जाता.ठीक इसी समय जनरल राबर्ट्स ने अपनी पत्नी को एक दिलचस्प चिट्ठी लिखी- इस समय मैं ही काबुल का असली बादशाह हूं, लेकिन यह ऐसा मुल्क नहीं है जिस पर राज करने की मेरे अंदर कोई चाहत हो, मैं जितनी जल्दी हो यहां से निकलने में ही अपनी भलाई समझूंगा.

 जाहिर है कि काबुल पहंुचते ही वे वहां मौजूद खतरे को समझ गए थे.

अफगानिस्तान के तख्त का क्या करना है यह भले ही जनरल राबर्ट्स को नहीं पता था लेकिन उन्हें एक बात अच्छी तरह से मालूम थी कि वे यहां ब्रिटिश रेसीडेंसी के अफसरों और सैनिकों के नरसंहार का बदला लेने आए हैं.लेकिन ठीक यहीं पर एक समस्या थी.हेरात के वे हड़ताली फौजी जिन्होंने काबुल पहंुच कर यह कत्लेआम किया था वे सब तो कब के ही वापस जा चुके थे.लेकिन फिर भी जनरल राबर्ट्स को सबक सिखाने और बदला लेने का काम करना ही था.

तुरंत ही जांच शुरू हुई। जिस किसी का भी उस कत्लेआम से दूर-दूर तक कोई संबंध था उसे गिरफ्तार कर लिया गया.इस सब लोगों को सरे आम फांसी दी गई.सबसे पहले उसे फांसी दी गई जिसे याकूब खान ने काबुल का कामकाज चलाने की जिम्मेदारी दी थी.

 उसका गुनाह सिर्फ इतना ही था कि कत्लेआम के बाद उसने उस जगह का दौरा किया था और लाशों के ढेर को वहां से हटवाया था.उसके बाद उसका नंबर आया जिसने केवगेनरी का कटा हुआ सर पूरे शहर में घुमाया था.जनरल राबर्ट्स के अनुसार उसने कुल 87लोगों को फांसी दी। यह भी कहा जाता है कि जिन लोगों को फांसी दी गई उनकी असल संख्या इससे कहीं ज्यादा थी.इस कत्लेआम की खबर जब लंदन पहंुची तो वहां इसे लेकर खुशी मनाई गई.

यह एक तरह का जवाबी कत्लेआम था जो जल्द ही ब्रिटिश फौज के लिए एक बड़ी समस्या का कारण बनने वाला था.जल्द ही इसे लेकर कईं तरह की अफवाहें पूरे अफगानिस्तान में फैलने लग गईं.इन अफवाहों में मरने वालों की संख्या कईं गुना बढ़ गई थी.इसे लेकर हर तरफ गुस्सा फैलने लग गया। इसने उन अफगानों को लड़ने का एक कारण दे दिया जिनका सबसे प्रिय काम लड़ना ही था.

जनरल राबर्ट्स ने इस बीच एक और गलती कर दी। उन्होंने तय किया उनकी फौज बाला हिसार के किले में नहीं बल्कि शहर के बाहर एक छावनी बना कर रहेगी.यह छावनी शेरपुर के पास उसी इलाके में थे जहां एक बार पहले भी ब्रिटिश छावनी बनाई गई थी.

काबुल की इन घटनाओं की खबर जब गज़नी पहंुची तो वहां एक बुर्जुग मौलाना मुश्क-ए-आलम ने जेहाद का ऐलान कर दिया.बहुत जल्द ही पूरे अफगानिस्तान के कबीलाई लोग भारी संख्या में उनके झंडे तले जमा होने लगे.इन लोगों में वारडक इलाके के एक बहुत बड़े लड़ाके और कबीलाई सरदार मुहम्मद जन भी शामिल थे.

जारी...

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