अफगानिस्ताननामा : हड़ताली फौजियों ने किया ब्रिटिश रेसीडेंसी का सफाया

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 27-02-2022
 हड़ताली फौजियों ने किया ब्रिटिश रेसीडेंसी का सफाया
हड़ताली फौजियों ने किया ब्रिटिश रेसीडेंसी का सफाया

 

अफगानिस्ताननामा: 48

हरजिंदर

हैजे की महामारी का असर जब कम हुआ तो एक और नई मुसीबत ब्रिटिश फौज का इंतजार कर रही थी.ब्रिटेन की फौज जब बाला हिसार किले में जम गई और ब्रिटेन को काबुल में परमानेंट रेजीडेंसी बनाने की इजाजत मिल गई तो सर लुइस कैवगेनरी को जुलाई 1879 में इसका जिम्मा संभालने के लिए भेजा गया.

अभी तक जो अंग्रेज अधिकारी वहां पहुंचे थे वे सभी फौजी अफसर थे जबकि सर कैवगेनरी डिप्लोमा थे. याकूब खान ने उनके रहने का इंतजाम भी बाला हिसार के विशाल किले में ही कर दिया.
दो तीन महीने बाद दो सितंबर को अचानक ही हेरात में तैनात अफगान फौज की चार रेजीमेंट के लोग काबुल पहुंच गए.
 
उन्हें पिछले चार महीने से तनख्वाह नहीं मिली थी और वे चाहते थे कि उन्हें उनका बकाया एकमुश्त दिया जाए. ठीक इसी समय एक जासूस ने आकर कैवगेनरी को आगाह किया कि ये अफगान सैनिक बहुत बड़ी परेशानी खड़ी कर सकते हैं. लेकिन उन्होंने इस चेतावनी को गंभीरता से नहीं लिया. और जल्द ही यही उनकी सबसे बड़ी गलती साबित होने वाली थी.
 
अगले दिन इन याकूब खान ने इन हड़ताली सैनिकों को एक महीने की बकाया तनख्वाह दे दी, लेकिन वे पूरी चार महीने की तनख्वाह लेने पर ही अड़े रहे। गुस्से में भरे ये सभी सैनिक ब्रिटिश रेसीडेंसी पहंुच गए जैसे बाकी तनख्वाह उन्हें वहां से मिल जाएगी.
 
इन सैनिकों के हुजूम ने ब्रिटिश रेजीडेंसी को घेर लिया. अंदर यह खबर पहंुच चुकी थी कि घेराव करने वाले सैनिक निहत्थे हैं और उनसे मोर्चा लेने की कोई जरूरत नहीं है, लेकिन वे बड़ी संख्या में थे इसलिए उन्हें तितर बितर करने के लिए हवाई फायर किए गए.
 
ये सैनिक वहां से चले भी गए. लेकिन थोड़ी ही देर में वे फिर लौट आए और इस बार उनके पास उनके हथियार भी थे. उनके साथ ही काबुल के आम नागरिक भी थे, जिन तक उन हवाई फायर की आवाज पहुंच चुकी थी और वह कईं अफवाहों को भी जन्म दे चुकी थी.
 
याकूब खान के अपने एक कमांडर को इस भीड़ को वहां समझा-बुझाकर वहां से हटाने के लिए भेजा लेकिन कोई उनकी सुनने के तैयार नहीं था- अब रेसीडेंसी की हिफाजत में लगे ब्रिटिश सैनिकों के पास लड़ाई लड़ने का कोई विकल्प नहीं था.
 
कैवगेनरी हालांकि डिप्लोमेट थे लेकिन उनकी गिनती बहादुर अफसरों में होती थी. ब्रिटिश सैनिकों ने जब जवाबी हमला बोला तो वे उसका नेतृत्व करने के लिए सबसे आगे थे. और सबसे पहली गोली भी उन्हीं को लगी.
 
अब सारी जिम्मेदारी लेफ्टिनेंट विलियम हेमिल्टन के कंधों पर आ गई. उन्होंने कुछ बंदूकधारियों को गिरा भी दिया लेकिन जल्द ही वे भी गोली का शिकार बन गए. इसके बाद की लड़ाई एक सिख अफसर ने लड़ी. लेकिन अफगान संख्या में बहुत ज्यादा थे और उन्होंने रेजीडेंसी के चारो ओर काफी उंची पोजीशन ले रखी थी जहां से वे अच्छी तरह निशाना साध सकते थे जबकि उन पर निशाना साधना आसान नहीं था.
 
थोड़ी ही देर में पूरी ब्रिटिश फौज का सफाया हो गया. वे सब अफगानिस्तान के एक ऐसे अंतर्विरोध का शिकार बन गए जिसमें उनकी कोई भूमिका नहीं थी. याकूब खान की फौज भी उनकी मदद के लिए आगे नहीं आई.
 
ब्रिटिश फौज की यह हार पिछली से भी ज्यादा शर्मनाक थी. ब्रिटिश फौज को इसका बदला लेना ही था। ब्रिटिश फौज उस समय काबुल से बहुत ज्यादा दूर भी नहीं थी. वह उस क्षेत्र में मौजूद थी जो आजकल पाकिस्तान का फ्रंटियर इलाका कहलाता है.
 
इसके अलावा जनरल राॅबर्ट के नेतृत्व में ब्रिटिश फौज की एक टुकड़ी तो कुर्रम घाटी में मौजूद थी. इस बार देरी करने या विचार करने का कोई मौका नहीं था. तुरंत ही हमले की तैयारियां शुरू हो गईं, सैनिकों को आगे बढ़ने का आदेश भी दे दिया गया.
 
जारी...