अफगानिस्ताननामा: आधुनिकीकरण और ब्रिटेन की धौंस

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 15-02-2022
अफगानिस्ताननामा:  आधुनिकीकरण और ब्रिटेन की धौंस
अफगानिस्ताननामा: आधुनिकीकरण और ब्रिटेन की धौंस

 

अफगानिस्ताननामा: 45  


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शेर अली जब काबुल के तख्तपर बैठा तो उसके सामने सबसे बड़ी समस्या उसके दो बड़े भाई थे जो खुद को तख्त काज्यादा बड़ा दावेदार मान रहे थे. शासन में उसकाशुरुआती समय इन से निपटने में ही बीत गया. इसके बाद जो शेरअली उभर कर सामने आया वह अफगानिस्तान के सभी शासकों से काफी अलग था.शेर अली ने अफगानिस्तानके आधुनिकीकरण की कोशिश की.

उसने औपचारिकतौर पर सरकारी पद बनाए.पहले आमतौर परशाह जिसे चाहता था उसे कोई पदवी दे देता था, लेकिन शेर अली ने इसके लिए पक्की व्यवस्था की. उसने अफगानिस्तान को पांच प्रांतों में बांटा काबुल,हेरात, अफगान तुर्किस्तान, कंधार और फरह. उसने इन प्रांतों का वली अपने बेटों की बनाने की परंपरा कोछोड़ उन सरदारों को इस पद पर नियुक्त किया जो उसके प्रति वफादार थे.

उसने सेना का भी आधुनिकीकरण किया और सबसे बड़ी बात यह थी किउसने अफगानिस्तान में पहली डाक सेवा शुरू की.शेर अली का समय आते-आतेदुनिया में कईं बड़े बदलाव हो चुके थे. एक तो अब भारतमें ईस्ट इंडिया कंपनी का नहीं सीधे ब्रिटिश साम्राज्य का ही शासन था.

दूसरेस्वेज नहर बन चुकी थी इसलिए ब्रिटिश के लिए इंग्लैंड से भारत तक आना जाना आसान होगया था. यह दौर विज्ञान की क्रांति का भी था जिसमेंब्रिटेन अगुवा था और उसकी  फौज अब नए किस्मके हथियारों से लैस थी.

यह वह समय भी थाजब ब्रिटिश और रूसी दोनों ही अफगानिस्तान पर अपनी पकड़ बनाने के लिए बेचैन दिख रहेथे.इस बीच ब्रिटेन मेंबेंजामिन डिज़रायली की कंजरवेटिव सरकार बनी जिसने अपनी ‘फाॅरवर्ड पाॅलिसी‘ का एलानकर दिया.

इसी के तहत शेर अली से कहा गया कि वह काबुलमें ब्रिटिश मिशन स्थापित करने की इजाजत दे. शेर अली ने यहतर्क देकर इनकार कर दिया कि अगर ब्रिटिश मिशन को इजाजत दी गई तो रूस भी ऐसा हीमिशन कायम करने की मांग करेगा.

दूसरे उसने यहभी कहा कि पिछले अनुभवों को देखते हुए वह इस मिशन की सुरक्षा की गारंटी नहीं देसकता.अप्रैल 1877 में जार की सेना ने तुर्किस्तान पर हमला बोलदिया और वह बल्गारिया होते हुए कांस्टेंटिनोपल तक पहुंच गई.

रूस का इरादा इसके आगे अफगानिस्तान होते हुए भारत तकपहुंचने का था. रूस ने इसके लिए 250 सदस्यों का एक प्रतिनिधिमंडल काबुल रवाना करदिया. इससे शेर अली सचेत हो गया क्योंकि उसे पता थाकि इसकी ब्रिटिश प्रतिक्रिया उसके लिए घातक हो सकती है.

शेर अली ने इस प्रतिनिधिमंडल के सामने तो हाथ जोड़ दिएलेकिन उसके सदस्यों ने काबुल में काफी समय गुजारा और यह खबर जल्द ही ब्रिटिश कोमिल गई. कोलकाता से नए वायसराय लार्ड लिटन ने शेर अलीको संदेश भेजा कि वह ब्रिटिश प्रतिनिधिमंडल को भी काबुल आने की इजाजत दे.

इससे पहले कि कोई जवाबआता, शेर अली के उस बेटे कानिधन हो गया जिसे उन्होंने युवराज घोषित किया था. लार्ड लिटन कोलगा कि यह अच्छा मौका है शोक व्यक्त करने के बहाने बिना किसी इजाजत एकप्रतिनिधिमंडल काबुल भेजा जा सकता है.

लेकिन 250 सदस्यों के इस प्रतिनिधिमंडल को अफगान सैनिकोंने खैबर दर्रे से आगे जाने ही नहीं दिया. इससे नाराजलॉर्ड लिटन उसी समय अफगानिस्तान पर हमला बोलना चाहते थे लेकिन डिजरायली ने उन्हेंरोक दिया. उन्होंने तुरंत ही अपने कैबिनेट की मीटिंग कीऔर शेर अली को अल्टीमेटम भेजने का फैसला किया.

शेर अली से कहागया कि वह माफी मांगे और काबुल में ब्रिटिश मिशन की इजाजत दे, या फिर युद्ध के लिए तैयार हो जाए.जवाब के लिए शेर अली को 20नवंबर 1878 तक का समय दिया गया था. लेकिन उसका जवाबआया 21 नवंबर को. उसमें भी माफी नहीं मांगी गई बस इतना ही कहा गया किब्रिटिश काबुल में अपना मिशन स्थापित कर सकते हैं. तब कि ब्रिटेनने हमले की तैयारी शुरू कर दी थी. दूसरे ब्रिटिशअफगान युद्ध की नींव रखी जा चुकी थी.

जारी...

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