अफगानिस्ताननामा : चंगेज के वारिस और उनका राज

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] • 2 Years ago
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चंगेज खान का शासन जब अपने शिखर पर था तभी उनके बेटों के बीच तलवारें खिंचनी शुरू हो गई थीं.चंगेज की सात पत्नियां थीं, जाहिर है कि उसके बच्चों की फेहरिस्त काफी लंबी रही होगी, लेकिन इतिहास में सिर्फ पांच बेटों का ही जिक्र आता है जो उसकी फौज के सबसे प्रमुख सिपहसालार भी थे.

इनमें सबसे बड़ा बेटा था जोची जो बड़ा होने के कारण खुद को अपने पिता की विरासत का सबसे बड़ा हकदार भी समझता था.ऐसा ही दावा चंगेज के दूसरे बेटे चगतई का भी था.यह भी कहा जाता है कि जोची ने यह घोषणा तक कर दी थी कि अगर चगतई को वारिस बनाया गया तो वह बर्दाश्त नहीं करेगा.

 हालांकि चगतई ने अपने पिता के सामने यही कहा था कि अगर जोची को वारिस बनाया जाएगा तो उसे स्वीकार होगा. ये दोनों ही बेटे अच्छे लड़ाके भी थे और उनके नाम कईं बड़ी जीत भी दर्ज थीं.लेकिन खुद चंगेज इन दोनों में ही किसी को भी अपना वारिस नहीं बनाना चाहता था.

उसकी नजर अपने तीसरे बेटे ओगेदेई पर थी.ओगेदेई में जज्बे के साथ ही जो धैर्य था वह चंगेज को सबसे ज्यादा आकर्षित करता था इसलिए वह उसे अपनी विरासत का सही हकदार मानता था.वारिस का यह तानाव बढ़ता इसके पहले ही जोची का निधन हो गया.

कहा जाता है कि विरासत के इस खेल में ही उसके खिलाफ षड़यंत्र रचा गया और उसके भोजन में जहर मिलाकर उसे मार डाला गया.इस कहानी में कितना सच है इसे समझ पाना अब असंभव है.जोची के निधन के साथ ही चंगेज खान की विरासत का यह झगड़ा हमेशा के लिए खत्म हो गया.

उस दौर के सम्राटों में अकेले चंगेज खान ही ऐसा था जिसने अपनी विरासत पर काफी ढंग से सोचा था, और अपनी मौत से पहले वह उसे ठीक से लागू करने का तरीका बनाने में भी कामयाब रहा.चंगेज की मृत्यु के बाद उसी इच्छा के अनुसार ओगेदेई को महान खान की पदवी दी गई.

यानी मंगोल साम्राज्य में वह सबसे उपर लगभग चंगेज खान की जगह पर आ गया.अच्छी बात यह रही कि बाकी बेटों ने भी इसे बिना कोई परेशानी खड़ी किए स्वीकार कर लिया.इसके अलावा चंगेज ने अपने साम्राज्य को तीन हिस्सों में बांट दिया.उसने अपने बेटे तोलियू को पूर्वोत्तर एशिया का हिस्सा दिया.जोची अब नहीं था लेकिन उसके बेटे बाटू को पश्चिम एशिया और रूस का साम्रज्य सौंपा.

 चगतई को मिला मध्या एशिया में ख्वारजम, कारा कतई और वह पूरा हिस्सा जिस आज हम अफगानिस्तान के नाम से जानते हैं.साम्राज्य के बाकी हिस्सों पर ओेगेदेई का नियंत्रण रहा.ओगेदेई ने आगे जाकर यूरोप के कईं और देशों पर कब्जा जमाया और एक तरह से चंगेज के फैसले को सही साबित किया.

चगतई की किस्मत इतनी अच्छी नहीं थी, उसे कईं लड़ाइयां हारनी पड़ीं.ख्वारजम में चंगेज खान ने जलाल-अद्दीन को खदेड़ कर वहां कब्जा जमा लिया था.जलाल-अद्दीन वहां से भाग कर दिल्ली में छुपा हुआ था.चंगेज के निधन के बाद वह भी लौट आया और उसने चगतई से लोहा लेना शुरू कर दिया.

इसी दौरान बामियान की लड़ाई में चगतई का बेटा मोईकुतन भी मारा गया.इसलिए जब चगतई का निधन हुआ तो मोईकुतन के बेटे कारा हुलेगू का शासक बनाया गया.उसकी उम्र काफी कम थी और यह कहा जाता है कि उसकी तरफ से उसकी मां ही शासन की देख-रेख करती थीं.मोईकुतन के भाइयों ने इसका फायदा उठाकर सत्ता अपने कब्जे में ले ली.

 लेकिन जल्द ही कारा हुलेगू सत्ता को फिर से हासिल करने में कामयाब रहा, इसे बाद उसे ओगेदेई ने भी अपना समर्थन दे दिया दिया,लेकिन कुछ ही साल में कारा हुलेगू का भी निधन हो गया.इसके बाद सत्ता आ गई उसके बेटे मुबारक शाह के हाथ में.

मुबारक को जिस समय सत्ता मिली वह बच्चा ही था और सत्ता की बागडोर उसकी मां ओरघाना ने संभाल ली.चंगेज खान के वंशजों में मुबारक खान पहला ऐसा शख्स था जिसने इस्लाम स्वीकार किया.हालांकि मुबारक ने कईं्र जंग जीतीं लेकिन उसका शासन भी बहुत लंबा नहीं चला, ईरान के एक हिस्से पर आक्रमण के दौरान वह मारा गया.

इस बीच मध्य एशिया बहुत सारे नए बदलावों की तैयारी कर रहा था.पहले के मध्य एशियाई शासकों के विपरीत मंगोल साम्राज्य ने भारत की ओर कदम नहीं बढ़ाए.चंगेज खान ने इसका इरादा बनाया था.उसने पेशावर से आगे बढ़ते हुए सिंधु नदी को पार भी किया था.ऐसा कहा जाता है कि उसे भारत का मौसम पसंद नहीं आया और वह वापस लौट गया.

 इसके बाद उसके वंशजों ने भी भारत का रुख नहीं किया.लेकिन इन वंशजों के बाद जो बड़ा शासक उभरा उसे इससे परहेज नहीं था.  

.....जारी

नोट: यह लेखक के अपने विचार हैं

( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )