अफगानिस्ताननामा ; दिल्ली, आगरा पर कब्जा और तोहफे में मिला कोहेनूर

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 09-11-2021
अफगानिस्ताननामा
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अफगानिस्ताननामा 18

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हरजिंदर

बाबर ने तय किया हमला चुपचाप रात में होगा.उसके पांच हजार सैनिक अंधेरे का लाभ उठाते हुए शत्रु के खेमें के बहुत पास पंहुच गए.वहां उन्हें पता पड़ा कि इब्राहिम लोदी की सेना न सिर्फ तैयार है बल्कि जैसे उन्हीं का इंतजार कर रही है.यानी हालात आक्रमण के अनुकूल नहीं थे इसलिए सेना उसे अंधेरे में लौट आई.

बाबर की फौज लौटी तो लोदी को लगा कि यह मौका अच्छा हो सकता है.एक दिन बाद ही लोदी की सेना ने हमला बोल दिया.इस हमले में ही वह बाबर के जाल में फंस गई.अब आगे की लड़ाई उस छोटे से गलियारें में होनी थी जिसे बाबर ने अपनी सैन्य रणनीति के तहत तैयार किया था.इसी गलियारे के भीतर जब लोदी की सेना आगे बढ़ी तो जल्द ही वह उस रेंज में आ गई जहां तक बाबर की तोपें मार कर सकती थीं.

इन तोपों ने गरजना शुरू किया तो दिल्ली सल्तनत की व्यूह रचना छिन्न भिन्न होने लगी.रणनीति यह थी कि बड़ी संख्या में सैनिक किनारों से और आप-पास के इलाके से आगे बढ़ेंगे और इन तोपों पर कब्जा कर लेंगे.लेकिन दोनों ही तरफ बाबर ने जो बाधाएं खड़ी कर दी थीं उसके चलते यह मुमकिन नहीं था.

जब एक के बाद एक तोप के गोले बरसने लगे तो लोदी की फौज के पांव उखड़ गए.बाबर को लगा कि अब वो मौका आ गया है जब पूरी तरह शिकस्त दी जा सकती है.

यह लड़ाई पूरे दिन चली। खुद बाबर ने अपनी किताब बाबरनामा में इस पर पूरे विस्तार से लिखा है.उसके अनुसार इस लड़ाई में लोदी की सेना के 15से 16हजार सैनिक मारे गए.जब उनके शवों को हटाया जा रहा था तो उन्हीं में एक शव सुल्तान इब्राहिम लोदी का भी था.जंग के दौरान वह कब और कैसे मारा गया इसका कोई प्रामाणिक ब्योरा नहीं मिलता.

सैनिकों ने सुल्तान का सर काटा और उसे बाबर के सामने पेश किया.यह क्षण लोदी वंश की समाप्ति और बाबर की दिल्ली सल्तनत पर जीत का था.

इसके बाद इब्राहिम लोदी के पूरे शव को नहलाया गया, उसे शाही लिबास पहनाया गया और वहीं पानीपत में ही पूरे सम्मान के साथ दफ्न कर दिया गया.उन्हें जिस जगह दफ्न किया गया वह जगह आज भी पानीपत में तहसील दफ्तर के पास है.

उनके लिए बनाई गई कब्र एक सीधा सा चैकोर चबूतरा था, जिसके अवशेष आज भी उस जगह मौजूद हैं.इसके पास ही सूफी फकीर बू अली शाह कलंदर की दरगाह भी है.हालांकि बाद में 1866के आस-पास ब्रिटिश सरकार ने लोदी के शव को वहां से निकाल कर जीटी रोड के पास दुबारा दफ्न कर दिया और वहां सुल्तान इब्राहिम लोदी के नाम का पत्थर भी लगवा दिया.यह वही जगह हैं जिसके पास ही कभी इब्राहिम लोदी ने ख्वाजा खिज्र का मकबरा बनवाया था.

लोदी की मृत्यु के बाद बाबर ने बिना जरा भी समय गंवाएं हुमायूं केा निर्देश दिया कि वह सेना के साथ आगे बढ़े और आगरा पर कब्जा कर ले.आगरा को इब्राहिम लोदी ने अपनी राजधानी बनाया था। बाकी की फौज बाबर के नेतृत्व में दिल्ली की ओर बढ़ी और वहां यमुना के किनारे डेरा डाल दिया.

इसके बाद बाबर ने दिन भर घूम कर दिल्ली की सभी बड़ी और अहम इमारतों का दौरा किया.शाम ढलते ही वह अपने खेमें में जीत का जश्न मनाने के लिए लौट आया.

अब बाबर का भी अगला पड़ाव आगरा ही था। वहां बाबर के वहां पहंुचने से पहले ही हुमायूं कब्जा कर चुका था। बाबर जब वहां पंहुचा तो हुमायूं ने उन्हें जीत के तोहफे के तौर पर एक बहुत बड़ा हीरा दिया.कहा जाता है कि यह हीरा कोहेनूर था जिसे हुमायूं को ग्वालियर के राजा ने भेंट किया था.

बाबरनामा में इस हीरे के बारे में काफी विस्तार से लिखा गया है.बाबर के अनुसार यह इतना बड़ा हीरा था जिस आकार के हीरे बहुत कम ही मिलते हैं.इसके बाद बाबर ने इस हीरे के बारे में जो लिखा वह काफी दिलचस्प है- यह हीरा इतना बेशकीमती है कि इसकी कीमत से पूरी दुनिया के लोगों को ढाई दिन तक खाना खिलाया जा सकता है.

आगे की लड़ाई बाबर के लिए बहुत आसान थी.बहुत सी रियासतें जो अभी तक इब्राहिम लोदी के साथ थीं और कुछ ने तो बाकायदा बाबर के खिलाफ जंग भी लड़ी थी, उन सब ने भी एक एक करके हार मान ली.बाबर ने जिन लोगों को भी किसी पद से हटाया उनके नाम पेंशन बांध दी। जिन लोगों को पेंशन दी गई, उनमें इब्राहिम लोदी की मां भी थीं.

नोट: यह लेखक के अपने विचार हैं

( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )