आफगानिस्ताननामा : मौत बांटता कारवां और धन-संपत्ति की लूट

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 20-10-2021
आफगानिस्ताननामा
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तैमूर को इस्लाम की तलवार भी कहा जाता है. यह नाम किसी और ने नहीं खुद उसी ने अपने आप को दिया था. वह खुद को गाज़ी भी कहता था. बड़े पैमाने पर धर्म परिवर्तन कराने के आरोप भी उस पर हैं, लेकिन दूसरी तरफ उसने बगदाद में उस दौर में उभर रही खिलाफत को खत्म करने का काम भी किया था.
 
मशहूर इतिहासकार और तैमूरकाल की विशेषज्ञ बीट्रिस फोब्र्स मंज़ का कहना है कि तैमूर ने अपनी फौज बनाने के लिए धर्म के बजाए अच्छे और बहादुर सैनिकों पर ही ज्यादा ध्यान दिया. इसलिए उसकी फौज में शिया भी थे, सुन्नी भी, ईसाई भी और हिंदू भी. छोटे स्थानीय कबीलों के लोगों केा वह अपनी फौज में भर्ती नहीं करता था.
 
वह मानता था कि ऐसे लोगों की अंतिम निष्ठा अपने कबीले और उसके सरदारों के प्रति होती है, उस राजा के लिए नहीं जिसकी फौज में वे भर्ती होते हैं.एक बार जब मध्य एशिया पर उसका कब्जा मुकम्मल हो गया तो तैमूर ने ईरान का रुख किया. 
 
तकरीबन इसी समय ईरान के शाह अबू सईद का निधन हो गया था और कोई दूसरा शाह वहां ठीक से जम नहीं पाया था. हालांकि तैमूर ने इसके पहले ही ईरान के एक इलाके खुरासान पर कब्जा कर लिया था. इसके और पहले वह हेरात पर हमला बोल चुका था.
 
हेरात आज के अफगानिस्तान में है, लेकिन उस समय यह ईरान के प्रभाव वाला शहर था और वहां फारसी भाषा का ही चलन था. कहा जाता है कि हेरात ने जब समर्पण नहीं किया तो तैमूर ने वहां के बहुत से नागरिकों को मौत के घाट उतार दिया और पूरे शहर को तबाह कर दिया.
 
तैमूर जब ईरान पहुंचा तो एक के बाद एक शहर दर शहर उसके सामने आत्मसमर्पण करते गए. इसके बावजूद वहां कईं बड़े नरसंहार हुए. इसफहान और शिराज़ में लाखों लोगों के मारे जाने का जिक्र कईं जगह मिलता है.
 
ईरान से आगे बढ़ते हुए उसने इराक को जीता और उसके आगे सीरिया तक अपना परचम फहरा दिया. इसे बाद उसकी फौज बढ़ती गई और आज जो रूस है उस भूभाग को तैमूर ने पूरा जीत लिया। जार्जिया, अजरबैजान, मुमलुक साम्राज्य एक के बाद एक कईं इलाके उसके कब्जे में आते गए.
 
इसके बाद तैमूर का अगला निशाना था सिंधु नदी के उस पार बसा भारत. तैमूर ने भारत पर आक्रमण क्यों किया इसके कईं कारण गिनाए जाते हैं. एक तो यह कि भारत की संपन्नता उसे आकर्षित कर रही थी. उस दौर का लेखन बताता है कि तैमूर भारत के हीरे जवाहरात और सोने-चांदी का जिक्र अक्सर करता था.
 
दूसरा दिल्ली सल्तनत उस समय तक काफी कमजोर हो चुकी थी और इससे तैमूर यह काम बहुत आसान लग रहा था. यह भी कहा जाता है कि उसका एक इरादा काफिरों को अपने धर्म में शामिल करना भी था. यूरोप वगैरह के जिन देशों पर तैमूर ने हमला बोला वहां भी उसकी नीति यही थी.
 
जब तैमूर ने सिंधु नदी को पार किया तो उसका पहला ठिकाना था पंजाब का कस्बा तुलंबा, जो अब पाकिस्तान में है. तुलंबा मध्य एशिया से दिल्ली की तरफ आने के रास्ते में पड़ता है इसलिए यह कस्बा सिकंदर और कनिष्क जैसे कईं आक्रमणकारियों को देख चुका था.
 
लेकिन तैमूर का आक्रमण उन सबसे काफी अलग था, क्योंकि तब पहली बार इस कस्बे ने नरसंहार की इतनी बड़ी त्रासदी देखी थी. तैमूर ने इसके बाद डेरा डाला चिनाब नदी के किनारे. नदी के उस पार मुल्तान था. मुल्तान के राजा को संदेश भेजा गया कि वह आत्मसमर्पण कर दे. राजा को अपनी फौज पर पूरा भरोसा था इसलिए उसने इनकार कर दिया.
 
पहाड़ियों पर घात लगाए सैनिकों से मोर्चा लेना तैमूर की सेना के लिए आसान नहीं था लेकिन तैमूर ने उन्हें भी मात देने की तरीके खोजे. इसके बाद मुल्तान में तबाही का दौर शुरू हुआ.यह सब भारत के न जाने कितने शहरों में हुआ. इसका एक उदाहरण भटनेर है जो आज की राजस्थान मंें है और अब हनुमानगढ़ के नाम से जाना जाता है.
 
उसके राजा दुलाचंद ने आत्मसमर्पण से इनकार कर दिया था और इसकी कीमत उस राज्य की पूरी जनता को चुकानी पड़ी.लेकिन पहली सबसे बड़ी लड़ाई इस फौज को पानीपत में लड़नी पड़ी. दिल्ली सल्तनत का नसीरुद्दीन महमूद शाह तुगलक तैमूर की ख्याति से भयभीत जरूर था फिर भी उसे दिल्ली तक पहुंचने से रोकने की तमाम कोशिशें की गईं.
 
तैमूर की सेना के लिए सबसे बड़ी बाधा बने दिल्ली सल्तनत की फौज के जंगी हाथी। पहली बार इस फौज का मुकाबला जंगी हाथियों से हो रहा था. तैमूर ने तुरंत ही इस मुकाबले का तरीका सोचा और हाथियों के रास्ते में खाइयां खुदवा दी. हाथी जब इन खाइयों में फंसे तो उनमें फूस डालकर आग लगा दी गई.
 
पानीपत की लड़ाई हारते ही महमूद तुगलक किसी तरह दिल्ली से भाग निकला और तैमूर के लिए दिल्ली का रास्ता बहुत आसान हो गया. दिल्ली में अभी इस फौज का अत्याचार शुरू ही हुआ था कि किसी ने अफवाह फैला दी कि तैमूर मारा गया है. इसके बाद दिल्ली में कईं मंगोल और तातार सैनिकों की हत्या कर दी गई.
 
इसकी खबर जब तैमूर को लगी तो उसने बदला लेने की ठानी. और उसके बाद जो हुआ वह दिल्ली के इतिहास का सबसे बड़ा नरसंहार था. दिल्ली में कितने लोग मारे गए इसका अब सिर्फ अनुमान ही लगाया जा सकता है. अलग-अलग अनुमानों में यह संख्या तीस हजार से एक लाख के बीच बताई जाती है.
 
इसके बाद शुरू हुआ लूटपाट का दौर। सेना ने लगभग हर तरह की संपत्ति को लूट लिया. कहा जाता है कि तैमूर की सेना ने दिल्ली को इस कदर बदहाल कर दिया था कि इससे उबरने में पूरी एक सदी का वक्त लग गया.
इसके बाद तैमूर ने वापस जाने का फैसला किया. उसका इरादा यहां शासन करने का नहीं था, इसलिए उसने दिल्ली के तख्त पर अपने किसी प्रतिनिधि को नहीं बिठाया.
 
लेकिन तैमूर अचानक क्यों लौट गया? ऐसे कई कारण बताए जाते हैं. एक कारण का जिक्र उस पुस्तक में है जिसे तैमूर की आत्मकथा कहा जाता है. तैमूर के कईं सिपहसालारों का कहना था कि अगर हम भारत में रह गए तो हमारी कौम की अगली पीढ़ी यहां के स्थानीय लोगों की तरह ही हो जाएगी और उसकी सारी बहादुरी खत्म हो जाएगी.
 ….जारी
 
नोट: यह लेखक के अपने विचार हैं
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )