अफगानिस्ताननामा : हर ओर से आती बुरी खबरें और घिर गए ब्रिटिश

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 26-01-2022
हर ओर से आती बुरी खबरें और घिर गए ब्रिटिश
हर ओर से आती बुरी खबरें और घिर गए ब्रिटिश

 

अफगानिस्ताननामा : 40

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जब काबुल में तनाव लगातार बढ़ रहा था उसी समय एक और घटना हुई. सुरक्षा के नाम पर खिलजी कबीले के लोगों ने उन दर्रों पर कब्जा जमा लिया था जो अफगानिस्तान को भारत से जोड़ते थे.इसी रास्ते से एक कारवां काबुल की ओर बढ़ रहा था जिसमें ब्रिटिश छावनी के लिए जरूरी साजो-सामान था. यह कारवां जब इन दर्रों से गुजरा तो उसे पूरी तरह लूट लिया गया
 
इसका एक दूसरा अर्थ यह था कि अफगानिस्तान में तैनात ब्रिटिश की भारत से सप्लाई लाइन पूरी तरह से काट दी गई थी.
 
एक नवंबर 1841 को हुई जिरगा की बैठक के बाद कश्मीरी जासूस छावनी पहुंचा और उसने बताया कि बहुत बड़ा खतरा आ रहा है. शाह शुजा के वजीर ने भी आकर तकरीबन यही बात बताई. खतरे से निपटने की रस्मी तौर पर थोड़ी बहुत तैयारियां भी की गईं.
 
लेकिन उस दिन छावनी में माहौल कुछ दूसरा था. मैकेनघटन को तरक्की मिल गई थी और उन्हें बंबई प्रेसीडेंसी का गवर्नर बना दिया गया था इसलिए जश्न मनाया जा रहा था.
 
अगले दिन सुबह जो हमला हुआ वह सीधा छावनी पर नहीं हुआ. खिलजी कबीले के लोगों ने काबुल की उस रेसीडेंसी को घेर लिया जहां एक तरह से ब्रिटिश दफ्तर था और वह ट्रेजरी थी जिससे सैनिकों की तनख्वाह और शाह शुजा तक पैसा पहुंचाया जाता था.
 
शुरू में सिर्फ दो तीन सौ लोग थे लेकिन थोड़ी देरी में ही रेसीडेंसी घेरने वालों की संख्या बहुत ज्यादा बढ़ गई. युद्ध शुरू हुआ तो गोलियों की गूंज छावनी तक सुनाई दी। जब कुछ इमारतों को आग लगानी शुरू की गई तो उसका धुंआ भी कुछ ही किलोमीटर दूर छावनी में दिखाई दिया.
 
इस सबके बावजूद छावनी से कोई मदद नहीं आई। मुमकिन है कि वहां लोग ठीक से समझ ही नहीं सके कि माजरा क्या है। वहां बात तब समझ में आई जब काबुल में रह रहे कुछ अंग्रेज भाग कर शरण लेने के लिए छावनी में पहुंचे.
 
वह सिर्फ शाह शुजा थे जिन्होंने मदद के लिए अपनी बटालियन भेजी. बाला हिसार के किले से भेजी गई इस फौजी टुकड़ी को रेसीडेंसी तक पहंुचने के लिए काबुल की गलियों से गुजरना था.
 
यह फौज जब तक वहां पहुंची रेसीडेंसी ध्वस्त हो चुकी थी. ज्यादातर ब्रिटिश और उनकी सुरक्षा में लोग मारे गए थे. एक अफसर और उसके साथ कुछ लोग ही ऐसे थे जो पीछे की दीवार तोड़कर भाग निकले थे और किसी तरह पैदल बचते बचाते छावनी पहुंच गए.
 
इस लड़ाई से अफगान कबीबाई लोगों के हौसले आसमान पर पहंुच गए. यह भी बताया जाता है कि शाह शुजा की फौज के बहुत से लोग बाला हिसार किले से निकल कर विद्रोही अफगानों में मिल गए थे.
 
कुछ जगह यह भी लिखा गया है कि उस समय एक तरह से अफगान राष्ट्रवाद की भावना वहां पनपने लग गई थी. जबकि ब्रिटिश का डर बहुत ज्यादा बढ़ गया था.
 
रेजीडेंसी की घटना को अभी दो हफ्ते भी नहीं बीते थे कि छावनी पर हमला हो गया. हालांकि ब्रिटिश फौज को इस बीच तैयारी का पूरा वक्त मिल गया था. आस-पास की पहाड़ियों पर उसने अपनी तोपें भी जमा दी थीं.
 
लेकिन हमलावर अफगान भी पूरी तैयारी से आए थे. शाम से शुरू हुई लड़ाई पूरी रात चली और सुबह तक ब्रिटिश अफगान हमलावरों को खदेड़ने में कामयाब हो गए थे। लेकिन तब तक छावनी में रह रहे लोगों को समझ में आने लगा था कि इस जीत के बाद निश्चिंत नहीं रहा जा सकता.
 
इस बीच कंधार में जो ब्रिटिश सैनिक तैनात थे उन्हें भी काबुल कूच करने का आदेश दे दिया गया ताकि वहां लड़ने के लिए हर वक्त पर्याप्त लोग रहें. लेकिन खिलजी कबीले के लोगों ने रास्ते में ही उन सब का सफाया कर दिया.
 
जल्द ही यह खबर भी आ गई कि कोहिस्तान में जो गोरखा रेजीमेंट तैनात थी उसके सभी सैनिकों और उनके परिवार वालों को मार डाला गया है हर तरफ से आ रही बुरी खबरें परेशानियों को और बढ़ा रहीं थीं. 
 
जारी....