अफगानिस्ताननामा : कबीलों की जंग में ‘बैक्ट्रिया’ बन गया तुखारिस्तान

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 11-09-2021
अफगानिस्तान नामा   : कबीलों की जंग में ‘बैक्ट्रिया’ बन गया तुखारिस्तान
अफगानिस्तान नामा : कबीलों की जंग में ‘बैक्ट्रिया’ बन गया तुखारिस्तान

 

अफगानिस्ताननामा भाग-दो

 

harjinderहरजिंदर

समय बदला तो कुषाण साम्राज्य का शासन धीरे-धीरे कमजोर पड़ने लगा. ठीक उसी समय ईरान में ससियन साम्राज्य न सिर्फ तेजी से उभरा बल्कि उसने अपनी पकड़ भी काफी मजबूत बना ली. इस साम्राज्य की स्थापना अर्देशिर प्रथम ने की थी जो एक मोची का बेटा था, लेकिन सामरिक कुशलता और राजनीतिक समझ में उसका कोई सानी नहीं था.

उसकी नजर बैक्टीरिया पर थी. जहां कुषाण साम्राज्य की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी थी.अर्देशिर ने इस विस्तार के लिए अपने बेटे शापुर प्रथम को चुना. इस मुल्क को जीतने में शाॅपुर को बहुत मेहनत भी नहीं करनी पड़ी. कम से कम बैक्ट्रिया का एक बड़ा हिस्सा तो उसने आसानी से जीत लिया.

सिंधु नदी तक का सारा हिस्सा उसके कब्जे में आ गया, लेकिन उसने इस नदी को पार नहीं किया. बौद्ध रिवाजों को मानने वाले साम्राज्य की जगह अब वहां एक ऐसी सरकार सत्ता में आ गई जो पारसी तौर-तरीकों से राज चलाने के लिए प्रतिबद्ध थी.

हालांकि इसका अर्थ यह नहीं है कि रशियन साम्राज्य आते ही वहां सब कुछ बदल गया. शाहपुर ने बहुत सी चीजें वैसी ही रखें. यहां तक कि सत्ता से जुड़े बहुत से नाम भी वैसे ही रहे. मसलन शाहपुर ने अपने लिए जो पदवी स्वीकार की वह थी कुषाण शाह या कुषाण शहंशाह.

कुषाण वंश को हम उसके आकर्षक सिक्कों की वजह से जानते हैं. शाहपुर ने इन सिक्कों में बहुत ज्यादा बदलाव नहीं किया. शहंशाह के रूप में उसे अपनी तस्वीर तो इन पर उकेरनी ही थी, इसके अलावा उसने अग्नि और नंदी जैसे पारसी प्रतीक और जोड़ दिए.

इस तरह बैक्ट्रिया में जो सत्ता सामने आई इतिहासकार उसे कुषाणों-ससियन राज्य कहते हैं.उस दौर की तारीखों को लेकर इतिहासकारों में बहुत से मतभेद हैं, लेकिन मोटे तौर पर यह कहा जा सकता है कि शाहपुर प्रथम ने बैक्टीरिया में ससियन साम्राज्य की नींव 238 ईस्वी सन के आस-पास रखी. इस साम्राज्य का पहला दौर 388 ईस्वी सन तक चला. इस बीच शाहपुर द्वितीय, और शापुर तृतीय ने बैक्टीरिया की बागडोर संभाली.

रशियन साम्राज्य को बैक्टीरिया से बाहर किया किदारा वंश ने. किदारा प्रथम एक कबीलाई शासक था जिसने धीरे-धीरे अपनी ताकत इतनी बढ़ा ली कि वह उस ससियन साम्राज्य को न सिर्फ चुनौती देने की स्थिति में आ गया जिसका शासन उस समय ईरान से लेकर हिंदूकुश तक था. किदारा ने एक बार जब सत्ता पर अपनी पकड़ बनानी शुरू की तो सिंधु नदी तक ही नहीं रुका.

उसने न सिर्फ इस नदी को पार किया, बल्कि अपने शासन को आज के पंजाब और कश्मीर तक फैलाया. किदारा के उभार को हूण शासन की शुरुआत भी माना जाता है.जिसे हम भारत में हूण के नाम से जानते हैं, दुनिया भर के इतिहासकार उन्हें हेफेथलाइट्स कहते हैं और ऐसा माना जाता है कि वे लोग खुद को एबोडाॅलो कहते थे.

हूण कहां से आए इस बारे में कईं धारणाएं हैं. एक धारणा यह है कि वे यूरोप से आए और इसलिए भारत में उन्हें श्वेत हूण कहा जाता था. दूसरी धारणा यह है कि वह स्थानीय कबीलों से उपजी एक ताकत थी और जिन्हें हम यूरोपीय हूण कहते हैं. वे उनसे अलग थे. उन्हें तुर्की और मंगोलिया से जोड़कर भी देखा जाता है.

भारतीय इतिहास में इन हूण को विशेष तौर पर जिक्र होता है. भारत में आने वाले विदेशी साम्राज्यों की फेहरिस्त में उनकी एक अलग जगह है. बैक्टीरिया में हूण वंश का यह शासन लगभग पौने दो सौ साल तक चला.

इस बीच बैक्ट्रिया को एक नया नाम भी मिला- तुखारिस्तान. इस शब्द के बारे में बहुत स्पष्ट नहीं है कि यह कहां से आया. कुछ लोग मानते हैं कि यह संस्कृत के शब्द तुषार से बना है, जिसका अर्थ है बर्फ या हिम. यह भी माना जाता है कि उस समय पश्चिमी भारत में एक तुषार राज्य था.

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यह शब्द उससे भी आया हो सकता है. कुछ लोग मानते हैं कि यह ग्रीक शब्द तोखो रोई से निकला है. बौद्ध ग्रंथ विभास शास्त्र में तोखेरा शब्द आया है, इसे उससे भी जोड़कर देखा जाता है. बहरहाल, हमें तुर्किस्तान के जो नक्शे मिलते हैं उनमें आज के अफगानिस्तान के अलावा कजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान वगैरह भी आते हैं.

हूण साम्राज्य जब सत्ता पर काबिज था तो ससियन साम्राज्य भी चुप नहीं बैठा था. 565 ईस्वी सन में मूल रूप में ईरान की इस ताकत ने कुछ कबीलाई ताकतों के साथ गंठजोड़ बिठाकर हल्ला बोला और खुसरो प्रथम की अगुवाई में पख्तूनों की इस धरती को फिर से जीत लिया.

हालांकि इसके लिए उन्हें पौने दो सौ साल का इंतजार करना पड़ा, और तब भी वे काबुल और बामियान को हूणों से नहीं जीत सके. कहा जाता है कि ससियन साम्राज्य का दूसरा शासनकाल तकरीबन 86 साल तक चला, जबकि कुछ जगह इसे 50 या 60 साल का ही माना गया है.

इस बार चीन से निकले एक कबीले यघबू ने मध्या एशिया की सबसे बड़ी और सबसे महत्वपूर्ण नदी अबू दरिया, जिसे यूरोपीय लोग आॅक्सस के नाम से जानते हैं, के उत्तर और दक्षिण को अपने नियंत्रण में ले लिया. तुखारिस्तान नाम का इस्तेमाल इस शासनकाल में सबसे ज्यादा हुआ.

जब हूण शासन में थे यघबू कबीले के हमले तभी से शुरू हो गए थे. रशियन साम्राज्य के दौरान भी उन्होंने कईं हमले किए लेकिन कामयाबी उन्हें 625 ईसवी सन के आस-पास मिली.इस वंश का शासन करीब सवा सौ साल तक चला.

तब तक दुनिया का एक बहुत बड़ा बदलाव तमाम मुल्कों को अपने आगोश में लेता हुआ मध्य एशिया की ओर बढ़ना शुरू हो गया था, और अफगानिस्तान अपने इतिहास के सबसे बड़े बदलाव की ओर चल पड़ा था.

( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)