“कला वह नहीं है जो आँखें देखती हैं, बल्कि वह है जो दिल महसूस करता है।” प्रसिद्ध चित्रकार असगर अली की यह पंक्ति उनकी कला यात्रा का सच्चा प्रतिबिंब है। दिल्ली के द्वारका सेक्टर-12 में स्थित उनका संस्थान ‘कलाभूमि’ आज भारतीय कला शिक्षा के क्षेत्र में एक प्रतिष्ठित नाम बन चुका है। असगर अली न केवल विश्व रिकॉर्ड धारक कलाकार हैं, बल्कि वे भारतीय संस्कृति की गंगा-जमुनी तहज़ीब के प्रतीक भी हैं, जिनकी कला सौंदर्य, आध्यात्मिकता और सामाजिक संदेश का अद्भुत संगम है। चित्रकार असगर अली पर द चेंज मेकर्स सीरिज के लिए यह विस्तृत रिपोर्ट तैयार की है आवाज द वाॅयस की संवाददाता ओनिका माहेश्वरी ने।
असगर अली बताते हैं कि भगवान कृष्ण के बालरूप की मासूम मुस्कान और उनकी बाँसुरी की मधुरता उन्हें बचपन से ही आकर्षित करती रही है। उनके अनुसार, “कृष्ण का मोरपंख, उनकी रंगीनता और सौंदर्य किसी भी कलाकार के मन में सृजन की लहर जगा देते हैं।”
अब तक वे भगवान कृष्ण पर आधारित पचास से अधिक पेंटिंग्स बना चुके हैं, जिनमें उनके बाल्यकाल की चंचलता, युवावस्था की लीलाएँ और महाभारत में उनकी दिव्य शिक्षाएँ समाहित हैं। वे कहते हैं, “कला का वास्तविक कौशल उसके सूक्ष्म विवरणों में छिपा होता है। मेरी हर पेंटिंग में मैंने भावना और गहराई दोनों को चित्रित करने की कोशिश की है।”
असगर अली की रचनात्मकता ने कई नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं। अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर उन्होंने अपनी टीम के साथ 50x30 फीट की भव्य पेंटिंग बनाई, जिसे देखकर हर कोई मंत्रमुग्ध रह गया।
यह कलाकृति विश्व रिकॉर्ड बुक्स में दर्ज हुई और प्रधानमंत्री कार्यालय को भी भेंट की गई। ‘कलाभूमि’ के नाम लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स और अन्य कई अंतरराष्ट्रीय रिकॉर्ड हैं। इनमें उनका एक विशेष कार्य पुराने ₹500 के नोट की पेंटिंग है, जो अपनी बारीकी और मौलिकता के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध हुई।
असगर अली मानते हैं कि कला केवल रंगों और आकृतियों का खेल नहीं है, बल्कि यह समाज में सौहार्द और एकता का संदेश देने का माध्यम है। वे चाहते हैं कि उनकी कला आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करे और उनमें सृजनशीलता के साथ सद्भावना की भावना जगाए।
शाहबाद मोहम्मदपुर गाँव में पले-बढ़े असगर अली के लिए यह यात्रा आसान नहीं थी। कॉलेज के दिनों में जब उन्हें धार्मिक ग्रंथों पर आधारित प्रोजेक्ट बनाने का अवसर मिला, तभी से कला के प्रति उनका जुनून गहराता गया। उनके गुरु राम बाबू ने उन्हें कृष्ण के जीवन और दर्शन की गहराई समझने में मदद की, जिसने उनकी कला को नई दिशा दी।
शुरुआती संघर्षों का ज़िक्र करते हुए असगर बताते हैं कि उनके परिवार ने पहले कला को करियर के रूप में अपनाने का विरोध किया। “उन्होंने मुझसे कहा कि अगर मैं कला को ही अपना रास्ता चुनता हूँ, तो मुझे खुद ही अपनी ज़िम्मेदारी उठानी होगी,” वे कहते हैं। परंतु असगर पीछे नहीं हटे।
वे दिल्ली और गुरुग्राम के बीच साइकिल से यात्रा करते हुए कला सिखाने जाया करते थे। उन्होंने अपने गाँव में एक साधारण चटाई पर बैठकर तीस विद्यार्थियों से शुरुआत की थी, और आज उनके ‘कलाभूमि’ संस्थान से सात हज़ार से अधिक विद्यार्थी प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके हैं। इनमें गृहिणियाँ, सेवानिवृत्त व्यक्ति, बच्चे और युवा सभी शामिल हैं। आज उनके कई विद्यार्थी देशभर — असम, लद्दाख और कोलकाता तक — अपनी कला कक्षाएँ चला रहे हैं।
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'कलाभूमि' ने कई विश्व रिकॉर्ड बनाए हैं
असगर अली की कला केवल कृष्ण तक सीमित नहीं रही। उन्होंने भगवान गणेश, गौतम बुद्ध और प्रकृति से प्रेरित कई अनूठी पेंटिंग्स बनाई हैं। कृष्ण के जीवन का सार समझने के लिए वे मथुरा, वृंदावन और यमुना के घाटों पर भी गए, जहाँ उन्होंने अपने अनुभवों को रंगों में ढाला। उनकी पसंदीदा पेंटिंग वह है जिसमें एक पेड़ के पीछे से कृष्ण मुस्कराते हुए गोपी को देख रहे हैं, जिसके पैर में काँटा चुभा है — उस दृश्य में करुणा, प्रेम और शरारत का अद्भुत मेल है।
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असगर अली मानते हैं कि हर व्यक्ति के भीतर एक कलाकार छिपा होता है। इसी विश्वास से प्रेरित होकर उन्होंने हाल ही में तिहाड़ जेल में एक पेंटिंग कार्यशाला आयोजित की, जहाँ कैदियों ने अपनी अनदेखी प्रतिभा को रंगों में उकेरा। वे बताते हैं, “कई बंदियों ने कहा कि रिहाई के बाद वे कला को ही अपने नए जीवन का आधार बनाना चाहते हैं।”
वे यह भी स्वीकार करते हैं कि इस्लाम परंपरागत रूप से चित्रकला को प्रोत्साहित नहीं करता, इसलिए शुरुआती दौर में उन्हें समाज और परिवार दोनों से विरोध झेलना पड़ा। पर असगर का मानना है कि कला किसी धर्म या समुदाय की सीमा में बँधी नहीं हो सकती। वह केवल सृजन और भावना का प्रतीक है, जो इंसान को इंसान से जोड़ती है।
तकनीकी युग में जब कृत्रिम बुद्धिमत्ता यानी AI तेजी से कला की दुनिया में प्रवेश कर रही है, असगर अली का दृष्टिकोण अत्यंत संतुलित है। वे कहते हैं, “AI आकर्षक है, लेकिन कलाकार का स्थान नहीं ले सकता। यह एक साधन है, जो आपकी रचनात्मकता को और सशक्त बना सकता है। परंतु कलाकार को उसकी आत्मा केवल उसकी अपनी कल्पना और संवेदना से ही मिलती है।”
जामिया मिल्लिया इस्लामिया से ललित कला में स्नातक असगर अली पिछले अठारह वर्षों से कला को समर्पित हैं। उन्होंने दुबई, सिंगापुर और थाईलैंड जैसे देशों में अपनी कृतियाँ प्रदर्शित की हैं। उनकी कुछ पेंटिंग्स को बिक्री के लिए बड़ी राशि में पेश किया गया, लेकिन वे कहते हैं, “कुछ रचनाएँ इतनी आत्मीय होती हैं कि उन्हें अलग नहीं किया जा सकता। वे मेरे जीवन का हिस्सा हैं।”
आज असगर अली इस बात पर गर्व करते हैं कि उनके विद्यार्थी देश के कोने-कोने में कला का प्रसार कर रहे हैं। वे मानते हैं कि कलात्मक यात्रा आसान नहीं होती, खासकर उस समय जब आधुनिकता के नाम पर व्यावसायिकता बढ़ रही हो। लेकिन सच्चे कलाकार को प्रयोग करते रहना चाहिए और गलतियों से डरना नहीं चाहिए।
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कलाभूमि में असगर साहब के शर्गिद
असगर अली केवल एक कलाकार नहीं, बल्कि एक विचार हैं — ऐसा विचार जो रंगों के माध्यम से प्रेम, सौहार्द और शांति का संदेश देता है। उनकी कला हमें यह सिखाती है कि अगर जुनून सच्चा हो तो साइकिल की यात्रा भी विश्व रिकॉर्ड तक पहुँचा सकती है।