शून्य कोविड नीति और मंदी के कारण चीन की आर्थिक विकास दर निचले स्तर पर

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] • 1 Years ago
शून्य कोविड नीति और मंदी ने चीन की आर्थिक विकास दर को तीस साल पीछे धकेला
शून्य कोविड नीति और मंदी ने चीन की आर्थिक विकास दर को तीस साल पीछे धकेला

 

मलिक असगर हाशमी /नई दिल्ली
 
दुनियाभर में कोविड फैलाने का आरोप झेल रहे चीन में ही यह महामारी न केवल मौत बनकर नाच रही है. इसने चीन की अर्थ व्यवस्था का भी दिवाला निकाल दिया है. एक रिपोर्ट की मानें तो ‘ शून्य कोविड नीति’ और मंदी ने चीन की आर्थिक विकास दर को 1990 की दशक के बराबर ला खड़ा किया है. यही नहीं विश्व बिरादरी से ‘पंगा’ लेने के चलते इसे इस परेशानी से उबरने में भी मदद नहीं मिल रही है.

सर्वविदित है कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग शासन और राजनीतिक ढांचे पर पूरी तरह काबिज हैं. हालांकि, हाल के दिनों में, अंतरराष्ट्रीय मीडिया में रिपोर्टें आती रही है कि शी और अर्थव्यवस्था देखने वाले प्रीमियर ली केकियांग के बीच दरार बढ़ गई है, जिसका दुष्प्रभाव इसकी नीतिगत असंगति के तौर पर देखी जा रही है. 
 
बीजिंग के अत्यधिक लॉकडाउन के कारण अधिकारियों और निवासियों के बीच विरोध और संघर्ष का माहौल है. इसके कारण लोगों को भोजन और चिकित्सा सेवा हासिल करने में दिक्कतें आ रही हैं. हफ्तों तक घर में बंद रहने से उनका गुस्सा बढ़ रहा है.
 
दूसरी तरफ, कठोर लॉकडाउन का नतीजा है कि चीन का आर्थिक विकास तीस साल पीछे चला गया है. एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि चीन का मौजूदा आर्थिक विकास दर तकरीबन 1990 के दशक के निचले स्तर पर है.
 
मर्केटर इंस्टीट्यूट फॉर चाइना स्टडीज (एमईआरआईसीएस) के प्रमुख विश्लेषक निस ग्रुनबर्ग के मुताबिक, सार्वजनिक असंतोष और संघर्ष के पीछे की नीतिगत बहस जारी रहनी चाहिए. साथ ही वे चेतावनी भी देते हैं कि स्थानीय या क्षेत्रीय अधिकारियों को फ्लाफ शुन्य कोविड नीति का बलि का बकरा बनाया जा सकता है. अधिक संख्या में अधिकारियों की बर्खास्तगी हो सकती है. 
 
ली के पास अर्थव्यवस्था में विश्वास बहाल करने के लिए एक छोटी अवधि है, क्योंकि वह इस साल प्रीमियर के रूप में पूरे पांच साल के दो कार्यकाल पूरा करने के बाद सेवानिवृत्त हो जाएंगे.
 
वह अभी हफ्तों तक बंद रहने वाले व्यवसाय और लॉजिस्टिक्स इन्फ्रास्ट्रक्चर को पटरी पर लाने के संघर्ष कर रहे हैं. इसके बावजूद जल्द कामयाबी मिलने की संभावना नहीं के बराबर है. चीनी सरकार इस साल 5.5 प्रतिशत के आर्थिक विकास की दर को पाने की कोशिश में है.
 
इस गिरावट और पार्टी कांग्रेस की स्थिर आर्थिक विकास की उम्मीद के बीच बीजिंग खुद को तेजी से शत्रुतापूर्ण अंतरराष्ट्रीय वातावरण का सामना कर रहा है.जर्मन-आधारित थिंक टैंक के अनुसार, यूक्रेन पर रूस के युद्ध के लिए पश्चिम की निर्णायक प्रतिक्रिया और इंडो-पैसिफिक भागीदारों के साथ बढ़ते अमेरिकी और यूरोपीय जुड़ाव ने बीजिंग में अमेरिका के नेतृत्व वाली नियंत्रण रणनीति की आशंकाओं को हवा दी है.
 
अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन हाल ही में एशिया दौरे पर थे. वहां उन्होंने समृद्धि के लिए नए इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क की घोषणा की और क्वाड के अन्य नेताओं के साथ मुलाकात की. यही नहीं हाल के जापान और भारत के साथ यूरोपीय संघ के शिखर सम्मेलन ने चीन को अलग-थलग कर दिया है.
 
चीन की शून्य-कोविड नीति के परिणामस्वरूप राजनयिक आदान-प्रदान में व्यवधान पैदा हुआ है. इसे चीनी शीर्ष नेतृत्व बढ़ता आर्थिक जोखिम के तौर पर देखता है.एमईआरआईसीएस के विश्लेषक ग्रेजगोर्ज जमब ने कहा कि वर्तमान अंतरराष्ट्रीय वातावरण में अस्थिर और अनिश्चित बना हुआ है, लेकिन निकट भविष्य में बीजिंग की विदेश नीति में बदलाव की संभावना नहीं है.
 
उनके मुताबिक,‘‘इसकी अधिक संभावना है ंकि शिनजियांग की नीतियों से चीन को अंतरराष्ट्रीय पटल अधिक विरोध झेलना पड़ सकता है. उदाहरण के तौर पर आसन्न इंडो-पैसिफिक-केंद्रित नाटो शिखर सम्मेलन को देख लें.