मुश्ताक अहमद : इनके परिवार ने बचा रखी है कश्मीर की ‘मोइकाशी’ कला

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 07-08-2022
मोइकाशीः मिलिए कश्मीर में इस जटिल कला को जीवित रखने वाले पश्मीना बुनकरों से
मोइकाशीः मिलिए कश्मीर में इस जटिल कला को जीवित रखने वाले पश्मीना बुनकरों से

 

आवाज द वाॅयस /श्रीनगर

‘मोइकाशी’-प्रसिद्ध पश्मीना शॉल को परिष्कार और सूक्ष्म बनावट की कारिगरी को कहते है. हालांकि, वक्त बीतने के साथ अब कश्मीर घाटी में कुछ ही कारीगर इस कला के शेष हैं. ऐसे की कारीगरों में एक हैं मुश्ताक अहमद.
 
इनका पूरा परिवार मोइकशी कारीगर हैं. इस परिवार के लोग दशकों से इस जटिल काम को जारी रखे हुए हैं. कई लोगों को लगता है कि ‘पुर्जगरी’ के बाद एक पश्मीना शॉल तैयार होती है, पर ऐसा है नही.
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मुश्ताक अहमद बताते हैं,लोगों को यह भ्रम है कि पुर्जगरी और मोइकाशी एक हैं. यह गलत धारणा है. करघे से शॉल बुनने के बाद पर्जर फिनिशिंग का काम करते हैं. वे धागे तो हटाते हैं, लेकिन पश्मीना में बकरी के कई नाजुक बाल शॉल में फिर भी रह जाते हैं. इन बालों को हटाना एक नाजुक काम है और इसे सुई की मदद से करना पड़ता है, जो केवल मोइकाश कर सकता है. ”
 
बशारत अहमद, जिनका परिवार पुराने शहर में यूनिक हैंडलूम कॉटेज इंडस्ट्रीज लिमिटेडश् चलाता है, ने कहा कि वे मोइकशी की कला को जीवित रखने की पूरी कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने बताया,“एक शॉल के टुकड़े पर मोइकाशी करने में हमें लगभग दो दिन लगते हैं. कुछ मोइकाशी के लिए बिल्कुल नहीं जाते हैं और नतीजतन, पश्मीना बकरी के बाल उन शॉल में रह जाते हैं.
 
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हालांकि हम पश्मीना बुनकरों और विक्रेताओं का परिवार हैं, लेकिन हम कश्मीर में मोइकाशी की कला को जीवित रखने की पूरी कोशिश कर रहे हैं.हस्तशिल्प विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि बशारत का परिवार लगभग 70 वर्षों से कला को जीवित रखे हुए है.मोइकाशी तैयार पश्मीना कपड़े से काले बाल निकालने की एक तकनीक है, जो शाल के परिष्कृत और सूक्ष्म बनावट को सुनिश्चित करता है.
 
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बशारत का परिवार इस काम के लिए प्रसिद्ध है. वे लगभग सात दशकों से कौशल को संरक्षित कर रहे हैं. उनका परिवार पश्मीना कताई, रफुगरी और मोइकाशी की कला में माहिर है. 
अधिकारी ने बताया कि हस्तशिल्प विभाग द्वारा शुरू किए गए शिल्प सफारी के काठी दरवाजा सर्किट के यात्रा कार्यक्रम उनकी इकाई को भी रखा है. ”
 
वर्ष 2021 में शिल्प और लोक कला श्रेणी में संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) की प्रतिष्ठित सूची में श्रीनगर को शामिल करने के मद्देनजर सफारी की शुरूआत की गई है.