बिहार में वनोत्पाद से आचार, शहद तैयार कर महिलाएं बन रही 'आत्मनिर्भर'

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 08-02-2021
बिहार में वनोत्पाद से आचार, शहद तैयार कर महिलाएं बन रही 'आत्मनिर्भर'
बिहार में वनोत्पाद से आचार, शहद तैयार कर महिलाएं बन रही 'आत्मनिर्भर'

 

मनोज पाठक / गया (बिहार)

बिहार के गया के जंगलों में जहां कुछ वर्षों तक नक्सलियों के बूटों की आवाजें गूंजती थी, आज वन क्षेत्र में रहने वाले अपना कौशल विकास कर वनोत्पाद से आचार और शहद बनाकर अपने जीविकोपार्जन का रास्ता ढूंढ लिया है.वन विभाग ने इन ग्रामीणों को कौशल विकास का प्रशिक्षण दिलवाकर गांवों में जागृति ला दी है.

गया के जंगलों में तैयार होने वाले इन उत्पादों का स्वाद अब देश के लोग भी चख सकेंगे.इन उत्पादों के ब्रांडिंग के प्रयास किए जा रहे हैं.बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी जमुई जिले में आयोजित पक्षी महोत्सव 'कलरव' के दौरान इन उत्पादों की तारीफ कर चुके हैं. गया के वन प्रमंडल पदाधिकारी (डीएफओ) अभिषेक कुमार ने बताया कि फिलहाल बाराचट्टी, बसाबर और गहलोर के जंगली इलाकों में वनोत्पाद से शहद, मोरिंगा पाउडर (सहजन के पत्ते से बना पाउडर), आचार तथा सबई घास से आर्ट और क्राफ्ट तैयार किए जा रहे हैं.

इस प्रोजेक्ट का नाम 'अरण्य' रखा गया है. कुमार कहते हैं कि ग्रामीण इलाकों में पहले वन समितियां बनाई गई और फिर इनको कौशल विकास का प्रशिक्षण देकर तैयार किया गया, इसके बाद इन्होंने खुद इसके लिए अपना रास्ता तैयार कर लिया.गया इलाके में बेर और सहजन बहुतायत मात्रा में उपलब्ध हैं, ऐसे में आज इन इलाकों में आचार बनाने का काम तेजी से चल रहा है.

इन वन समितियों में अधिकांश महिलाएं हैं, जिन्होंने अपने दम पर रोजगार का साधन खोज लिया. बाराचट्टी के भलुआ गांव के सैकड़ों महिलाएं आज आचार बनाने के कार्य में जुटी हुई हैं.इस कार्य से जुड़ी मालती देवी कहती है, "बेर के लिए कहीं जाना नहीं पड़ता है.यहां के जंगलों में बेर आसानी से उपलब्ध होता है.इसके बाद थोड़ी सी मेहनत कर इसका आचार तैयार किया जा सकता है."

इस क्षेत्र के जंगलों में मधुमक्खी पालन कर लोग शहद भी तैयार कर रहे हैं. वन विभाग के एक अधिकारी बताते हैं कि 'अरण्यक' के उत्पादों को बाजार उपलब्ध कराने के लिए राज्य में लगने वाले विभिन्न समारोहों और मेलों में स्टॉल लगाए जा रहे हैं.इसके अलावा पटना चिड़ियाघर, पटना अरण्य भवन और दिल्ली स्थित बिहार भवन में स्टॉल लगाए जाने की योजना बनाई गई है.

व्यापारियों को भी इस उत्पाद से जोड़ा जाएगा. डीएफओ कुमार कहते हैं, "सहजन के पत्ते से तैयार मोरिंगा पाउडर गर्भवती महिलाओं के लिए काफी लाभदायक है.बच्चा जन्म लेने के बाद भी यह पाउडर जच्चा और बच्चा के लिए पौष्टिक पदार्थ है, इसमें पोटासियम और आयरन की भरपूर मात्रा है.जल्द ही यह पाउडर गया के सभी आंगनबाड़ी केंद्रों में आपूर्ति की जाएगी." उन्होंने कहा कि उत्पादों को जब बाजार मिलेगा, तब लोग प्रोत्साहित होंगे.इससे उनकी आमदनी बढ़ेगी.उन्होंने कहा कि मार्केटिंग के लिए भी वन समितियों को लगाया जा रहा है.

भविष्य में और भी उत्पादों को इसमें जोड़ने की योजना बनाई जाएगी, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों को रोजगार का साधन उनके घरों में ही उपलब्ध हो सके. इधर, ग्रामीण क्षेत्र में इस बदलाव से क्षेत्र की महिलाएं भी खुश हैं.भलुआ गांव की शोभा देवी कहती हैं, "पहले कुछ काम नहीं था, लेकिन आज घर के काम निपटाकर इन कार्यों में लगी रहती हूं.इससे ना केवल दो पैसे घर में आ रहे हैं बल्कि हम लोग आत्मनिर्भर भी हो रहे हैं."